दिल्ली से लगते राज्यों में गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे कृषि अवशेष (पराली) जलाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसके कारण दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा फिर प्रदूषित होने लगी है। हालांकि, वातावरण में नमी की मात्र कम होने के कारण पराली का धुआं दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा को बहुत अधिक नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा, लेकिन यह चिंता अवश्य पैदा करता है। पिछले वर्ष सर्दियों में जब प्रदूषण का स्तर चरम पर था, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने संबंधित राज्यों को खेतों में पराली जलाने पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे। इसपर रोक का दावा भी किया गया था, लेकिन फिर से पराली जलाया जाना दर्शाता है कि यह रोक प्रभावी नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि आगे धान की पराली भी जलाई जाएगी और सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर को फिर से वायु प्रदूषण से दो-चार होना पड़ेगा।

जहां एक ओर हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खेतों में कृषि अवशेष जलाए जा रहे हैं, वहीं दिल्ली में भी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के प्रति गंभीरता नजर नहीं आ रही है। वायु प्रदूषण नियंत्रण में दिल्ली मेट्रो का बड़ा योगदान है, लेकिन यह भी यात्रियों के लिए महंगी होती जा रही है। दो बार मेट्रो किराये में वृद्धि के बाद अब मेट्रो की पार्किग दरों में भी करीब दोगुने की बढ़ोतरी कर दी गई है। सरकार को जहां वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के उपायों को बढ़ावा देना चाहिए, वहां मेट्रो की पार्किग दरों में इजाफा करने जैसे कदम यकीनन आत्मघाती साबित होंगे। दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा बेहतर बनाने के लिए जहां पड़ोसी राज्यों को कृषि अवशेषों को जलाने पर प्रभावी रोक लगानी चाहिए, वहीं केंद्र व दिल्ली सरकार को निजी वाहनों के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]