सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हिमाचल प्रदेश के कसौली में होटलों के अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने पहुंचीं सहायक नगर नियोजन अधिकारी की एक होटल व्यवसाई ने जिस तरह गोली मार कर हत्या कर दी वह दुस्साहस की पराकाष्ठा ही है। इस खौफनाक घटना से यह भी पता चलता है कि अवैध निर्माण करने वाले किस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देश की भी धज्जियां उड़ाने के लिए तैयार हैं। अपने होटल के बाहर अवैध निर्माण करने वाले कसौली के व्यवसायी ने जिस वक्त सहायक नगर नियोजन अधिकारी के साथ लोक निर्माण विभाग के एक कर्मचारी पर भी गोलियां दागी उस समय अन्य अनेक लोगों के साथ पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकी और यहां तक कि हत्यारे को पकड़ भी नहीं पाई। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने कानून के शासन को खुली चुनौती देने वाली इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि हत्यारे की गिरफ्तारी के साथ ही अवैध निर्माण करने वालों को भी बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन केवल इतनी ही अपेक्षा पर्याप्त नहीं है। अवैध निर्माण की समस्या को गंभीर संकट में तब्दील करने में सहायक बनने वालों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई अपेक्षित है। कसौली के मामले में पहले नेशनल ग्रीन टिब्यूनल और फिर सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि यहां करीब एक दर्जन होटलों ने अवैध निर्माण कर रखा है। कोई भी समझ सकता है कि इन होटलों ने अवैध निर्माण रातों-रात नहीं किया होगा। यदि नगर नियोजन या लोक निर्माण विभाग ने अवैध निर्माण शुरू होते ही नियम-कानूनों पर गौर किया होता तो समस्या इतनी गंभीर नहीं हुई होती कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता।

नि:संदेह ऐसा नहीं है कि केवल कसौली में ही होटल वालों ने नियम-कानूनों को ताक पर रखकर मनमाने अवैध निर्माण कर डाले। यह एक देशव्यापी समस्या है। अगर फर्क है तो केवल इतना कि पहाड़ी राज्यों में अवैध निर्माण और अतिक्रमण का रूप-स्वरूप देश के मैदानी प्रांतों से कुछ अलग है। आम तौर पर अवैध निर्माण शुरू होते ही वही सरकारी अमला घोर लापरवाही का परिचय देता है जिस पर उसे रोकने की जिम्मेदारी होती है। कई बार तो संबंधित विभागों के भ्रष्ट अधिकारी अवैध निर्माण को प्रोत्साहित भी करते हैं। अपने देश में कुछ ले-देकर हर तरह के अवैध निर्माण से आंखें फेर लेना इतना आम हो गया है कि अब करीब-करीब हर कोई यह काम करने को तत्पर दिखता है। बावजूद इसके हमारे नीति-नियंताओं को इसकी चिंता नहीं कि सार्वजनिक स्थलों को अवैध निर्माण या फिर अतिक्रमण के जरिये हड़पने की प्रवृत्ति एक राष्ट्रीय रोग बनती जा रही है। नतीजा यह है कि हमारे छोटे-बड़े शहर बेतरतीब विकास का शर्मनाक नमूना बन गए हैं। वे ट्रैफिक जाम, प्रदूषण और शहरी जीवन को कष्टकारी बनाने वाली अन्य अव्यवस्थाओं से इसीलिए घिरते जा रहे हैं, क्योंकि नगर नियोजन संबंधी नियम-कानूनों को मनचाहे ढंग से तोड़ा जा रहा है। इसमें संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट के दखल मात्र से अवैध निर्माण की समस्या पर लगाम लग सकती है, क्योंकि एक तो हर मामला उस तक पहुंचता नहीं और दूसरे संबंधित सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार नहीं।

[ मुख्य संपादकीय ]