जीएसटी काउंसिल का यह फैसला कारोबारियों को सचमुच बड़ी राहत देने वाला है कि अब उन्हें महीने में सिर्फ एक ही रिटर्न भरना पड़ेगा। अभी तक उन्हें तीन बार रिटर्न भरना पड़ा रहा था और इसमें संदेह नहीं कि यह तमाम छोटे कारोबारियों पर अनावश्यक बोझ डाल रहा था। चूंकि यह फैसला जीएसटी को सरल बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है इसलिए इसका केवल स्वागत ही नहीं होना चाहिए, बल्कि टैक्स चुकाने में तत्परता के रूप में भी दिखना चाहिए। जीएसटी काउंसिल ने कारोबारियों को एक बड़ी राहत देने के फैसले के साथ ही राजस्व संग्रह की समीक्षा भी की। यह समीक्षा कुछ भी कहती हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अप्रैल माह में पहली बार जीएसटी के तहत राजस्व संग्रह एक लाख करोड़ रुपये की सीमा पार कर गया। यह उत्साहजनक होने के साथ ही इस बात का सूचक है कि जीसएटी के सरलीकरण का लाभ अधिक राजस्व संग्रह के रूप में मिल रहा है। जीएसटी संग्रह में वृद्धि अर्थव्यवस्था में तेजी का भी सूचक है। कारोबार जगत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह सिलसिला कायम रहे। बेहतर होगा कि जीएसटी काउंसिल जीएसटी प्रणाली के सरलीकरण की प्रक्रिया को और तेजी प्रदान करे। दरअसल कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि आगामी जुलाई में जब जीएसटी पर अमल का एक वर्ष पूरा हो तब तक इस टैक्स प्रणाली की बची-खुची जटिलताएं भी दूर कर ली जाएं। इसी के साथ कारोबार जगत को भी चाहिए कि वह राजस्व संग्रह के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक बने। ऐसा होने पर ही जीएसटी काउंसिल को सरलीकरण को गति देने में आसानी होगी। ध्यान रहे कि अभी उसे काफी कुछ करना है।

यह ठीक है कि जीएसटी काउंसिल आम सहमति से फैसले लेती है, लेकिन यह ठीक नहीं कि कुछ मामलों में उसे सहमति बनाने में जरूरत से ज्यादा समय लग रहा है। बतौर उदाहरण डिजिटल भुगतान में रियायत देने का फैसला फिर टल गया। इसकी उम्मीद इसलिए नहीं की जा रही थी, क्योंकि डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है। यह सही समय है जब जीएसटी काउंसिल जीएसटी दरों के स्लैब को कम करने पर भी विचार करे। इसकी आवश्यकता एक अर्से से महसूस की जा रही है। जीएसटी दरों को और अधिक तर्कसंगत बनाने की जरूरत पर विचार करते समय इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि कम टैक्स दरें अधिक लोगों को टैक्स देने के लिए प्रेरित करती हैं। अच्छा होगा कि जीएसटी के साथ अन्य करों की दरों को भी उस स्तर पर लाया जाए जिससे लोग टैक्स बचाने के बजाय उसे देने के लिए प्रेरित हों। देश में एक ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है कि जो भी टैक्स देने में समर्थ हो वह यह काम स्वेच्छा से आगे बढ़कर करे। ऐसा माहौल बनाने से विकास योजनाओं को गति देने में आसानी होगी और इसका लाभ भी सभी को मिलेगा। यह भी उचित होगा कि जीएसटी काउसिंल पेट्रोलियम उत्पादों और शराब को भी जीएसटी के दायरे में लाने की दिशा में आगे बढ़े। जो बात सैद्धांतिक तौर पर सही है उस पर अमल में देरी का कोई औचित्य नहीं।

[ मुख्य संपादकीय ]