इस बार आम बजट को लेकर उत्सुकता इसलिए और अधिक थी, क्योंकि यह मोदी सरकार के कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट था। बजट से हर कोई उम्मीदें लगाता है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई बजट नहीं रहा जिसने सभी को संतुष्ट किया हो। यह बजट भी ऐसा ही है। जहां नौकरी-पेशा मध्यवर्ग खुद को खाली हाथ पा रहा है वहीं कारोबार जगत की प्रतिक्रिया मिलीजुली है, लेकिन इस बजट में बहुत कुछ ऐसा है जिससे आम आदमी और खासकर गरीब और गांवों के लोग राहत की सांस ले सकते हैं। इसे चाहे आगामी आम चुनाव की तैयारी से जोड़कर देखा जाए या फिर गरीब तबके और ग्रामीण आबादी की बढ़ती बेचैनी को दूर करने की कोशिश के रूप में, लेकिन उनकी दशा सुधारने के लिए इस बजट में कुछ ठोस कदम दिख रहे हैं। इसे किसानों पर मेहरबानी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार जहां आलू, टमाटर और प्याज पैदा करने वाले किसानों के लिए ऑपरेशन फ्लड की तर्ज पर ऑपरेशन ग्रीन शुरू करने जा रही है वहीं खरीफ की उपज के लिए डेढ़ गुना एमएसपी देने की तैयारी कर रही है। खेती और किसानों की दशा सुधारना सरकार की प्राथमिकता में होना ही चाहिए, क्योंकि अगर ग्रामीण आबादी की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तो फिर अर्थव्यवस्था का पहिया भी सही तरह नहीं घूम सकता। यह अच्छा हुआ कि सरकार ने यह समझा कि किसानों को उनकी लागत से कहीं अधिक मूल्य मिलना ही चाहिए। यह भी समय की मांग थी कि ग्रामीण इलाकों के ढांचे पर विशेष ध्यान दिया जाए।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवारने की मांग को एक बड़ी हद तक पूरा करने के बाद अब सरकार के सामने चुनौती यह है कि वह अपने कहे को करके दिखाए। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले बजट की व्याख्या इस रूप में की गई थी कि इससे ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल जाएगी। स्पष्ट है कि सरकार को कृषि क्षेत्र में अनुकूल नतीजे हासिल करने पर खासी मेहनत करनी होगी। यही बात 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए सालाना 5 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा योजना समेत अन्य योजनाओं पर भी लागू होती है। केंद्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर डिजिटल तंत्र के जरिये यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दुनिया की यह सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ढंग से जमीन पर उतरे। इसके लिए राज्यों को भी अपनी मशीनरी को दुरुस्त करना होगा। दरअसल सरकारी तंत्र को ठोस नतीजे देने वाले सिस्टम में तब्दील करके ही वे सभी वायदे पूरे हो सकते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में सुधार को लेकर किए गए हैं। उद्योगों को गति देने और रोजगार देने के मामले में तो अनिवार्य तौर पर इस पर निगाह रखनी होगी कि वांछित नतीजे अवश्य सामने आएं। बजट एक तरह से चुनौतियों के बीच संतुलन साधने की कला है। चूंकि सरकार को संतुलन साधने के साथ ही आगामी आम चुनाव का भी ध्यान रखना था इसलिए इस पर हैरानी नहीं कि बजट में काफी कुछ लोकलुभावन है। किसी भी सत्तारूढ़ दल से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह चुनावी वर्ष में जनता को लुभाने की कोशिश से बचे। अगर अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती दिखती रहे तो इसमें हर्ज नहीं।

[ मुख्य संपादकीय ]