डाटा चोरी मामले में कैंब्रिज एनालिटिका और फेसबुक को दूसरी नोटिस देने की नौबत आई तो इसका मतलब है कि पहले नोटिस से बात नहीं बनी। ऐसा लगता है कि ये दोनों कंपनियां अपनी जवाबदेही को लेकर गंभीर नहीं। एक ओर जहां कैंब्रिज एनालिटिका ने कामचलाऊ जवाब देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली वहीं दूसरी ओर फेसबुक खेद जताने और भविष्य में ऐसा न होने देने का आश्वासन भर देने तक सीमित रही। यह ठीक है कि भारत सरकार ने दूसरा नोटिस जारी कर यह संकेत दिया कि वह कोई सख्त फैसला भी ले सकती है, लेकिन केवल इतने से काम चलने वाला नहीं है। यह वक्त की मांग है कि सरकार डाटा चोरी रोकने के लिए कोई ठोस कानून बनाए। ऐसे कोई कानून इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि कल को कोई अन्य कंपनी वैसा ही काम कर सकती है जैसा फेसबुक की लापरवाही से कैंब्रिज एनालिटिका ने किया। चूंकि अब यह खतरा बढ़ गया है कि लोगों का डाटा चुराकर और राजनीतिक, सामाजिक मामलों में उनकी रुचि जानकर उन्हें मिथ्या प्रचार से प्रभावित करने का काम किया जा सकता है इसलिए फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों को किन्हीं नियम-कानूनों में बांधने की जरूरत है। सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती और न ही उसे करना चाहिए कि नियम-कानूनों के अभाव में राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक संगठनों के लिए काम करने वाली कंपनियां चुनावों को प्रभावित करने और यहां तक कि किसी संवेदनशील मसले पर लोगों को उकसाने या बरगलाने का भी काम कर सकती हैं। जब यह स्पष्ट हो गया है कि इस तरह का काम होने लगा है तब फिर भारत को डाटा सुरक्षा के मामले में वैसे ही कानून बनाने चाहिए जैसे यूरोपीय समुदाय ने बनाए हैं। यह ठीक नहीं कि फेसबुक की ओर से यह कहा जा रहा है कि वह डाटा सुरक्षा के वैसे प्रबंध नहीं कर सकती जैसे उसने यूरोपीय समुदाय के लिए किए हैं। क्या इसका यह मतलब नहीं कि वह भारत को दोयम दर्जे के देश के तौर पर देख रही है और वह भी तब जब भारत एक बड़ी डिजिटल ताकत के तौर पर उभर रहा है?

डाटा चोरी रोकने के लिए सक्षम कानून बनाने के साथ ही यह भी समझने की आवश्यकता है कि मुफ्त में सूचनाएं और जानकारी प्रदान करने वाली इंटरनेट आधारित कंपनियां उपभोक्ताओं का डाटा किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करती ही हैं। शायद इसीलिए यह कहा गया है कि लोग जिन सेवाओं का मूल्य नहीं चुकाते उनके उत्पाद वे स्वयं होते हैं। डिजिटल युग की इस हकीकत के बावजूद उपभोक्ताओं को यह जानने का अधिकार तो मिलना ही चाहिए कि उनकी निजी जानकारी का उपयोग कौन किसलिए कर रहा है? इस मामले में यह भी ध्यान रहे कि आज के डिजिटल युग में ऐसी अपेक्षा का कोई मतलब नहीं कि डाटा यानी निजी जानकारी का किसी भी रूप में कहीं कोई इस्तेमाल ही न होने पाए। आधार पहचान पत्र के मामले में कुछ लोग इसी अपेक्षा के साथ कुतर्क करने में लगे हुए हैं। डाटा के मामले में निजता के अधिकार को जरूरत से ज्यादा खींचना एक तरह की डिजिटल अज्ञानता ही है।

[ मुख्य संपादकीय ]