यह कोई नई या गोपनीय बात नहीं कि पूवरेत्तर भारत के राज्यों में बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ साजिश का भी हिस्सा है। यह एक तथ्य है कि पूवरेत्तर के राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश के सीमांत इलाकों में भी आबादी के संतुलन को बदलने की कोशिश हो रही है। कई क्षेत्रों में तो यह बदल भी गया है और उसके कारण तमाम समस्याएं भी उभर आई हैं, लेकिन बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए जैसी कोशिश होनी चाहिए वह नहीं हो रही है। उलटे जब कभी बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों को वापस भेजने की बात होती है तो उस पर इस या उस बहाने आपत्ति खड़ी करने वाले सामने आ जाते हैं। एक बार फिर ऐसा ही हो रहा है। जब जनरल बिपिन रावत के इस बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए कि बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान का हाथ है और इस मामले में चीन भी उसकी मदद कर रहा है तब उनके कथन के इस हिस्से पर तूल दिया जा रहा है कि असम के राजनीतिक दल अॅाल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का विस्तार कहीं तेजी से हुआ है और इस तेजी ने भाजपा के उभार को भी मात किया है। नि:संदेह आदर्श स्थिति यही कहती है कि सेना प्रमुख को राजनीतिक दलों के उत्थान-पतन की तेजी पर चर्चा से बचना चाहिए, लेकिन क्या पूवरेत्तर के हालात आदर्श स्थिति के सूचक हैं? विभिन्न राजनीतिक दल सेना प्रमुख के बयान को राजनीतिक बताकर हंगामा कर सकते हैं, लेकिन इससे यह सच्चाई छिप नहीं सकती कि पश्चिम बंगाल, असम के साथ पूवरेत्तर के अन्य राज्यों में किस तरह कुछ राजनीतिक दलों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देकर अपनी राजनीति चमकाई है। ऐसी राजनीति करने वाले दलों में अॅाल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की भी गिनती होती है।

अगर सेना प्रमुख या अन्य कोई गैर राजनीतिक व्यक्ति किसी गंभीर समस्या को बयान करते हुए राजनीतिक दल विशेष का उल्लेख करे तो उसके राजनीतिक मायने निकालने के बजाय यह देखा जाना ज्यादा जरूरी है कि उसने जो कहा वह सच है या नहीं? आखिर देश के एक हिस्से में आबादी संतुलन को बदल रही अवैध घुसपैठ ज्यादा गंभीर बात है या फिर सेना प्रमुख की ओर से इसका उल्लेख करना? यह अच्छा होता कि सेना प्रमुख राजनीतिक दलों का नाम लेने के स्थान पर संकेत रूप में अपनी बात कहते, लेकिन अब जब यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उनका बयान राजनीतिक या धार्मिक नहीं और उन्होंने इस क्षेत्र में आबादी के मिश्रण और विकास की जरूरत पर जोर दिया है तो क्या इस जरूरत को पूरा करने का काम होगा? क्या उनके बयान पर शोर मचा रहे लोग यह समझने के लिए तैयार होंगे कि सीमावर्ती इलाकों में आबादी के संतुलन में व्यापक बदलाव आना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है? खरी बात कहने वाले जनरल रावत के बयान से परेशान लोगों को यह भी देखना चाहिए कि उन्होंने यह भी कहा है कि जो हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता है और समस्या को समग्रता में देखे जाने और उसे मिलकर हल करने की आवश्यकता है।

[ मुख्य संपादकीय ]