उत्तराखंड में नए शैक्षिक सत्र से सभी स्कूलों में महंगी किताबों की जगह एनसीईआरटी की किताबें लागू होंगी
निजी विद्यालयों में इस बार महंगी किताबों के स्थान पर एनसीईआरटी की किताबें लागू की जा रही हैं।
नए शैक्षिक सत्र से छात्रों और उनके अभिभावकों को खासी राहत मिलने जा रही है। निजी विद्यालयों में इस बार महंगी किताबों के स्थान पर एनसीईआरटी की किताबें लागू की जा रही हैं
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प्रदेश में आगामी अप्रैल माह से शुरू हो रहे नए शैक्षिक सत्र में निजी विद्यालयों में भी सस्ती पाठ्यपुस्तकें मिलने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। प्रदेश सरकार ने नए सत्र से राज्य के सरकारी और सीबीएसई व राज्य बोर्ड से मान्यताप्राप्त निजी विद्यालयों में एनसीईआरटी की किताबें लागू करने का निर्णय लिया है। चूंकि नया सत्र शुरू होने में गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं, लिहाजा सरकार अपने उक्त फैसले के क्रियान्वयन को लेकर सतर्क हो गई है। नया सत्र शुरू होते ही अभिभावकों के निशाने पर रहने वाले निजी विद्यालय पहली बार अब सरकार के निशाने पर हैं। सरकार इन विद्यालयों की निगरानी करेगी।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने विभागीय अधिकारियों को निजी विद्यालयों का मुआयना करने के निर्देश दिए हैं, ताकि निजी विद्यालय एनसीईआरटी से इतर निजी प्रकाशकों की किताबें लगाने के लिए छात्रों पर दबाव न बनाने पाएं। हालांकि, सरकार के सामने भी खुद उसके आदेश को सख्ती से लागू करने की चुनौती बनी हुई है। दरअसल, निजी विद्यालय मनमाने तरीके से प्रकाशकों का चयन करते रहे हैं। छात्रों और अभिभावकों को महंगी पाठ्यपुस्तकें खरीदने के लिए विवश किया जाता रहा है। नए सत्र में ऐसी कोशिश न हों, इसके लिए चौकसी बरतने की आवश्यकता है।
सरकार का ये प्रयोग कामयाब रहा तो इसके दूरगामी परिणाम सामने आना तय है। सरकार की इस पूरी कवायद में अच्छी बात ये भी रही कि मौजूदा सत्र में एनसीईआरटी की किताबें लागू किए जाने के मामले में शिक्षा मंत्रालय की ओर से निजी विद्यालयों के साथ कई मर्तबा बातचीत भी की। इन बैठकों में कई निजी विद्यालयों ने शुरुआती हिचक के बाद एनसीईआरटी की किताबें लागू किए जाने को लेकर सहमति भी जताई। अब इस सहमति के आधार पर छात्रों और अभिभावकों को महंगी किताबें खरीदने से राहत मिलती है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। सरकार निजी विद्यालयों में लिए जाने वाले मनमाने शुल्क पर भी अंकुश लगाने को फीस एक्ट लागू करने का इरादा जाहिर कर चुकी है। इस एक्ट को लेकर भी अब तक सरकार का रुख व्यावहारिक रहा है। विभिन्न राज्यों के फीस एक्ट का अध्ययन और इस संबंध में केंद्र सरकार की ओर से भी भेजे गए एक मॉडल एक्ट का भी अवलोकन किया जा चुका है। इस मामले में भी सरकार यह साफ कर चुकी है कि एक्ट के जरिये निजी विद्यालयों के उत्पीडऩ का इरादा कतई नहीं है। अलबत्ता, विद्यार्थियों व अभिभावकों का उत्पीडऩ रोकने की राह आसान होगी।
[ मुख्य संपादकीय: उत्तराखंड ]