छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में भाजपा विधायक भीमा मंडावी के साथ चार सुरक्षाकर्मियों की मौत नक्सलियों के फिर से सिर उठाने का संकेत होने के साथ ही इस बात का भी सूचक है कि उनका दमन किया जाना शेष है। दंतेवाड़ा की खौफनाक घटना यही रेखांकित कर रही है कि नक्सलियों का दुस्साहस कायम है और वे चुनाव प्रक्रिया के साथ कानून एवं व्यवस्था को भी चुनौती देने में समर्थ बने हुए हैं। यह सिलसिला अब थमना ही चाहिए। हालांकि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर कुछ लगाम लगी है, लेकिन यह ठीक नहीं कि वे जब-तब हिंसक वारदात करने में समर्थ हो जाते हैं। चिंता की बात यह है कि उनके ज्यादातर हमले बारूदी सुरंगों के जरिये ही होते हैं।

आखिर वे बारूदी सुरंगों का इतनी आसानी से इस्तेमाल करने में कैसे समर्थ हैं? एक सवाल यह भी है कि उन्हें आधुनिक हथियारों और विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति कहां से हो रही है? इन सवालों के जवाब इसलिए तलाशे जाने चाहिए, क्योंकि इस राज्य में नक्सली रह-रह कर सिर उठाकर उन दावों को चुनौती देते हैं जिनके तहत यह कहा जाता है कि उनकी ताकत कम हो रही है। नक्सली किस तरह अभी भी एक बड़ा खतरा बने हुए हैं, इसका प्रमाण केवल यही नहीं है कि तमाम चौकसी के बाद भी वे जहां-तहां हमले करने में समर्थ हैं, बल्कि यह भी है कि उनके हमलों के भय से राज्य में लोकसभा चुनाव तीन चरणों में कराने पड़ रहे हैं। इसके पहले विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराने पड़े थे। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चंद दिनों पहले नक्सलियों के हमले में बीएसएफ के चार जवान निशाना बने थे।

जब नक्सली संगठन चुनाव के बहिष्कार की धमकी देने के साथ हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने में लगे हुए थे तब फिर कहीं अधिक सतर्कता बरती जानी चाहिए थी। जरूरी केवल यह नहीं है कि चौकसी में कमी के कारणों का पता लगाने के साथ उनका निवारण किया जाए, बल्कि यह भी है कि जिन नक्सलियों ने भाजपा विधायक के काफिले को निशाना बनाया उन्हें जितनी जल्दी संभव हो, ठिकाने लगाया जाए। इसी के साथ इसकी भी तह तक जाने की जरूरत है कि नक्सलियों ने नक्सल प्रभावित इलाके के इकलौते भाजपा विधायक को क्यों निशाना बनाया? नक्सलियों को यह संदेश देना बहुत जरूरी है कि अगर वे हिंसा का सहारा लेने से बाज नहीं आएंगे तो उन्हें किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।

नक्सली किसी नरमी के हकदार इसलिए नहीं, क्योंकि वे वसूली करने वाले गिरोह में तब्दील हो गए हैं और निर्धन तबके को बहकाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। छत्तीसगढ़ की नई सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नक्सली पुलिस एवं सुरक्षा बलों की ओर से बनाए गए दबाव से मुक्त न होने पाएं। यह शुभ संकेत नहीं कि वे एक सप्ताह के अंदर दो बड़ी वारदात करने में सक्षम हो गए। यह जरूरी है कि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार नक्सलियों से निपटने की नीति को और प्रभावी बनाने पर ध्यान दे। आंतरिक सुरक्षा के मामले में संकीर्ण राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।