केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे एक्शन प्लान में चार और नए शहरों को शामिल किया जाना स्वागत योग्य कदम है। इससे इन शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट और घाट निर्माण के कार्यो में तेजी देखने को मिलेगी। इसके साथ ही अब प्रदेश का एक बड़ा क्षेत्र सीधे नमामि गंगे एक्शन प्लान से जुड़ गया है। इससे गंगा स्वच्छता की ओर एक और कदम बढ़ा है। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि इन स्थानों पर भी तेजी से कार्य हो सकेगा। देहरादून, उत्तरकाशी, केदारनाथ व श्रीकोट अभी सीधे एक्शन प्लान से नहीं जुड़े थे। विशेषकर देहरादून में तो रिस्पना और बिंदाल नदियां अब कई स्थानों पर नाले का रूप ले चुकी हैं। एक्शन प्लान में शामिल किए जाने से इनके पुनर्जीवन को सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों को बल मिलेगा। अभी तक नमामि गंगे एक्शन प्लान में गंगा और चुनिंदा सहायक नदियों को शामिल किया गया था। इन स्थानों पर सीवरेज ट्रीटमेंट कार्य करने के साथ ही गंगा में बहने वाले नालों को रोकने की दिशा में कदम उठाए गए। यहां तक तो सब ठीक है लेकिन चारधाम यात्र मार्ग के साथ ही गंगा से सटे क्षेत्रों में प्लास्टिक जनित कूड़े का निकलना और पॉलीथिन पर रोक के बावजूद इसका इस्तेमाल किया जाना गंगा स्वच्छता की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को झटका दे रहा है। यह अच्छी बात है कि सरकार का ध्यान इस ओर गया है।

सरकार को इस योजना के तहत किए जा रहे निर्माण कार्यो की गुणवत्ता पर भी विशेष ध्यान देना होगा। जिस तरह से रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी में निर्माण कार्यो को लेकर कुछ शिकायतें आईं, उससे साफ है कि कहीं न कहीं इसमें लापरवाही बरती जा रही है। नमामि गंगे एक्शन प्लान प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक है। इसे देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह जिस तरह की सख्त नजर केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यो पर रखे हुए है, उसी तरह का निगरानी नमामि गंगे को लेकर भी रखे। सरकार को यह भी समझना होगा कि बिना जनसहभागिता के कोई भी स्वच्छता अभियान पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें इस अभियान से भी जोड़ा जाना चाहिए। पॉलीथिन के प्रयोग पर रोक केवल शासनादेश तक सीमित न होकर धरातल पर उतरनी चाहिए। इसके लिए शासन से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। तब ही सही मायनों में गंगा स्वच्छता की दिशा में कदम बढ़ सकेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]