प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह दक्षेस देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करने के बजाय बिम्सटेक देशों के शासकों को निमंत्रण भेजकर एक तीर से दो निशाने साधने वाला काम किया है। बिम्सटेक देशों की ओर हाथ बढ़ाकर एक तो उन्होंने इस सवाल के लिए गुंजाइश नहीं रखी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को क्यों नहीं बुलाया और दूसरे, करीब-करीब उन सभी देशों को मैत्री संदेश भी दे दिया जो दक्षेस के सदस्य हैैं। बिम्सटेक में पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान को छोड़कर दक्षेस के अन्य सभी देश शामिल हैैं। मोदी सरकार ने पाकिस्तान की प्रत्यक्ष अनदेखी किए बिना उसे यह संदेश भी दे दिया कि अभी हालात ऐसे नहीं कि उस पर भरोसा किया जा सके। जहां तक अफगानिस्तान और मालदीव की बात है तो यह किसी से छिपा नहीं कि इन दोनों देशों से भारत के रिश्ते बहुत मधुर हैैं और आने वाले समय में यह मधुरता बढ़नी ही है।

माना जा रहा है कि भारतीय प्रधानमंत्री अपने पहले विदेश दौरे में मालदीव जा सकते हैैं। बिम्सटेक देशों के अतिरिक्त किर्गिस्तान और मॉरीशस के शासनाध्यक्ष भी निमंत्रित किए गए हैैं तो एक्ट एशिया नीति के तहत ही। भारत सरकार के इस फैसले पर पाकिस्तान चाहे जो प्रतिक्रिया दे, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह अपने उसी पुराने रुख पर कायम दिख रहा है जिसके तहत वह कश्मीर में दखल जारी रखते हुए भारत से सभी मसलों पर बात करना चाह रहा है। इस चाहत की एक वजह भारत से व्यापारिक संबंध स्थापित करना भी है ताकि खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को कुछ सहारा दिया जा सके।

पाकिस्तान पर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक तो इसके स्पष्ट संकेत नहीं कि उसने उन आतंकी तत्वों पर सचमुच लगाम लगाई है जो भारत के लिए खतरा बने हुए हैैं और दूसरे, वह बालाकोट हमले के इतने दिन बाद भी अपने हवाई क्षेत्र को प्रतिबंधित किए हुए है। हैरत नहीं कि किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने की उसकी घोषणा का मकसद भी केवल अंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ की काली सूची में आने से बचना हो। पाकिस्तान से ऐसे किसी आधार पर बात शुरू करने का कोई औचित्य नहीं कि आम चुनाव संपन्न हो गए हैैं और खुद इमरान खान यह मान रहे थे कि मोदी के सत्ता में लौटने पर ही दोनों देशों में वार्ता संभव है।

नि:संदेह पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ जो सख्त कदम उठाए गए थे और खासकर जिस तरह बालाकोट में आतंकियों के अड्डे को ध्वस्त करने का पराक्रम किया गया उसका उस पर असर तो पड़ा है, लेकिन इसका भरोसा नहीं कि वह फिर कब पुरानी हरकतों में लिप्त हो जाए। पाकिस्तान ने भारत को इतने धोखे दिए हैैं कि अब उस पर आसानी से भरोसा न करने में ही समझदारी है। मोदी को मिला जनादेश भी पाकिस्तान से तत्काल बात शुरू करने की जरूरत रेखांकित नहीं करता। नि:संदेह इस तथ्य को भी ओझल नहीं किया जाना चाहिए कि इमरान खान अपनी उस सेना के रहमोकरम पर हैैं जो भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती है और जो कश्मीर पर नजरें भी गड़ाए हुए है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप