मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में सभी को पेयजल उपलब्ध कराने को जिस तरह प्राथमिकता प्रदान कर रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि हर घर को नल से जल पहुंचाने की योजना को वैसा ही महत्व मिलने वाला है जैसा पिछले कार्यकाल में स्वच्छ भारत अभियान को मिला। हर घर में नल से जल पहुंचाने की योजना को तेजी से आगे बढ़ाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि आज देश के 18 फीसद गांवों में ही नल से जलापूर्ति होती है। तथ्य यह भी है कि जहां अभी नल से जल की आपूर्ति होती है वहां या तो पेयजल की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है या फिर उसकी आपूर्ति बाधित हो रही है।

एक संकट यह भी है कि देश के विभिन्न हिस्सों में भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है या फिर दूषित हो रहा है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक ओर जहां तमाम छोटी नदियां प्रदूषण अथवा अतिक्रमण के कारण नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई हैैं वहां दूसरी ओर जल के अन्य परंपरागत स्रोत खत्म हो रहे हैैं।

इस सबको देखते हुए नवगठित केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय को इसका अहसास होना चाहिए कि उसके सामने गंभीर चुनौतियां हैैं। इन चुनौतियों का सामना अकेले केंद्र सरकार नहीं कर सकती। जरूरी केवल यह नहीं है कि हर किस्म के जल संकट का समाधान करने में केंद्र को राज्यों का सहयोग मिले, बल्कि यह भी है कि पानी के सवाल पर किसी तरह की संकीर्ण राजनीति का परिचय न दिया जाए, क्योंकि आज वे राज्य भी जल संकट के मुहाने पर दिख रहे हैैं जहां कई छोटी-बड़ी नदियां हैैं।

यह सही है कि मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में गंगा को साफ-सुथरा करने के लिए जो कोशिश की वह अब रंग ला रही है, लेकिन अन्य बड़ी नदियों के संरक्षण की योजनाएं कारगर होती नहीं दिख रही हैैं। छोटी और मौसमी नदियों की तो कोई सुध लेने वाला ही नहीं दिखता। यह स्वागतयोग्य है कि जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्यों के पेयजल मंत्रियों के साथ बैठक के बाद यह रेखांकित किया कि देश के 82 फीसद ग्रामीण हिस्से में पेयजल की आपूर्ति नल से करने का लक्ष्य तय कर लिया गया है, लेकिन यह एक कठिन लक्ष्य है। इसे इससे समझा जा सकता है कि आज केवल सिक्किम ही एक ऐसा राज्य है जहां 99 फीसद घरों में नल से जल पहुंचाया जाता है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि राज्यों ने पानी के तर्कसंगत उपयोग पर सहमति जताई, क्योंकि इस तरह की सहमतियां अक्सर कागजी ही साबित होती हैैं।

बेहतर हो कि हर घर को नल से जल पहुंचाने की योजना को गति देने के साथ ही जल संरक्षण के उपायों पर सख्ती से अमल किया जाए और साथ ही पानी की बर्बादी रोकने के प्रभावी कदम उठाए जाएं। इसके लिए जरूरी हो तो नए कानूनों का निर्माण किया जाए। यह भी समय की मांग है कि नदी जल को संविधान की समवर्ती सूची में लाया जाए। नि:संदेह यह भी जरूरी है कि आम आदमी भी जल संरक्षण की परवाह करे।

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