यह राहत की खबर के साथ ही उम्मीद की एक किरण भी है कि गंगा में विषाक्त कचरा उड़ेलने वाली औद्योगिक इकाइयों में कमी आ रही हैं। यह कमी प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ सख्ती बरतने के चलते आई है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ उनकी विभिन्न एजेंसियों को यह सीख मिलनी चाहिए कि गंगा और अन्य दूसरी नदियां तभी साफ-सुथरी होंगी जब उनके गुनहगारों के खिलाफ सख्ती दिखाई जाएगी। इसका कोई औचित्य नहीं कि गंगा सरीखी जीवनदायी नदियों के किनारे स्थापित कारखाने उनमें अपना प्रदूषण बहाते रहें और फिर भी उन्हें केवल चेतावनी दी जाती रहे।

नि:संदेह कल-कारखाने भी आवश्यक हैैं, लेकिन गंगा की कीमत पर नहीं। वे उद्योग नरमी के हकदार नहीं जो नदियों को प्रदूषित करने में लगे हुए हैैं। एक बड़ी संख्या में कल-कारखाने ऐसे हैैं जो प्रदूषण रोधी संयंत्रो का संचालन दिखावे के लिए करते हैैं। कहीं पूरी क्षमता वाले प्रदूषण रोधी संयंत्र नहीं हैैं तो कहीं वे कभी-कभार ही चलाए जाते हैैं। कुछ कल-कारखाने तो ऐसे हैैं जो प्रदूषण निवारक एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकते हैैं। ऐसे कल-कारखाने दंड के पात्र बनने चाहिए। यह अच्छी बात नहीं कि गंगा किनारे 57 औद्योगिक इकाइयां अभी भी ऐसी हैैं जो प्रदूषण की रोकथाम नहीं कर सकी हैैं। इससे तो यही पता चलता है कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ समय रहते समुचित कार्रवाई करने में कुछ कसर बाकी है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की मानें तो उसने ढाई साल में प्रदूषण रोधी नियमों का पालन न करने वाली 350 से अधिक औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का आदेश दिया है। इसका मतलब यह भी है कि उसे गंगा को गंदा करने वाले कारखानों को काबू में करने में समय लग रहा है। बेहतर हो कि ढिठाई का परिचय दे रहे कल-कारखानों के खिलाफ और सख्ती बरती जाए। ऐसी ही सख्ती गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अन्य उपायों के अमल के मामले में भी दिखाई जानी चाहिए। इसकी आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि एक तो गंगा के प्रदूषण में अपेक्षित कमी नहीं आ पाई है और दूसरे इस नदी को साफ-सुथरा करने का वादा किए हुए चार साल से अधिक का समय बीत चुका है। इस सूरत में इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि गंगा को स्वच्छ करने के जो भी उपाय किए गए हैैं उन सबके अमल पर और जोर दिया जाए। ऐसा करते समय गंगा सफाई अभियान की सतत निगरानी का कोई तंत्र विकसित किया जाना चाहिए और निगरानी के दायरे में केवल कल-कारखाने ही नहीं, सीवेज शोधन संयंत्र भी आने चाहिए।

कल-कारखानों के अलावा खराब या कम क्षमता वाले सीवेज शोधन संयंत्र गंगा के दूसरे सबसे बड़े गुनहगार हैैं। इसके लिए मूलत: राज्य सरकारों के तहत काम करने वाले नगर निकाय जिम्मेदार हैैं। आज जब नगर निकाय तमाम संसाधनों से लैस किए जा रहे हैैं तब फिर यह आवश्यक है कि उन्हें जवाबदेही के दायरे में भी लाया जाए। अच्छा हो कि मोदी सरकार यह समझे कि उसे केवल गंगा को साफ ही नहीं करना, बल्कि एक उदाहरण भी पेश करना है। ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।