नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने यह कह कर एक बार फिर अपनी सरकार के अडिग इरादे जाहिर किए कि कोई कितना भी विरोध कर ले, यह कानून वापस नहीं होगा। नि:संदेह संसद से पारित और अधिसूचित कोई कानून इस आधार पर वापस होना भी नहीं चाहिए कि कुछ लोग उसकी मनमानी व्याख्या कर उसका विरोध कर रहे हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जिस कानून का किसी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना ही नहीं उसे लेकर आम लोगों और खासकर मुस्लिम समुदाय को बरगलाया जा रहा है। इसके लिए उस एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का हवाला दिया जा रहा है जिसके बारे में प्रधानमंत्री के साथ गृहमंत्री भी स्पष्ट कर चुके हैैं कि फिलहाल वह सरकार के एजेंडे में नहीं है।

इस स्पष्टीकरण के बाद विपक्ष ने यह अभियान छेड़ दिया कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर ही एनआरसी है। विपक्ष के ऐसे ही दुष्प्रचार की काट के लिए सत्तापक्ष को सीएए के समर्थन में अभियान छेड़ना पड़ा है। इस अभियान के तहत ही लखनऊ में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने इस कानून पर विपक्षी नेताओं को बहस की चुनौती दी। इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री से बहस की चुनौती पेश की। वास्तव में अब इस तरह की बहस का कोई औचित्य नहीं रह गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करने जा रहा है और यह जगजाहिर ही है कि उसका ही निर्णय सर्वोपरि होगा।

कम से कम अब तो सीएए के विरोध में सड़कों पर उतरने वालों को यह समझ आना ही चाहिए कि वे व्यर्थ की कसरत कर रहे हैैं। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 60 याचिकाएं दायर की गई हैैं। इतनी अधिक याचिकाओं का निपटारा करने में समय लग सकता है, लेकिन बेहतर होगा कि उनका जल्द निस्तारण किया जाए ताकि भ्रम और आशंका के बादल छंटे। इस मामले को संविधान पीठ के हवाले भी किया जा सकता है। जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि प्रत्येक कानून का निर्माण एक विशेष संदर्भ-प्रसंग में किया जाता है।

सीएए के निर्माण के पीछे भी एक विशेष पृष्ठभूमि है। यदि इस कानून के जरिये अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को राहत दी गई है तो इसके न्यायसंगत आधार हैैं। समझना कठिन है कि जो यह मांग कर रहे कि इस कानून में पाकिस्तान के प्रताड़ित बहुसंख्यक भी शामिल किए जाने चाहिए वे ऐसी कोई तार्किक मांग उठाने से क्यों कतरा रहे हैं कि इस पड़ोसी देश में इराक के कुर्दिस्तान सरीखे किसी सुरक्षित ठिकाने का निर्माण किया जाना चाहिए?