केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की पुरानी प्रक्रिया बहाल करने के लिए अध्यादेश लाने का जो फैसला किया वह इसलिए जरूरी था, क्योंकि न्यायपालिका की ओर से तय की गई शिक्षकों की नियुक्ति की नई प्रक्रिया का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ा जा रहा था और दूसरे आम चुनाव के पहले कोई भी सरकार आरक्षित तबके को नाराज करने का खतरा मोल नहीं ले सकती थी। समझना कठिन है कि न्यायपालिका ने ऐसी परिस्थिति क्यों पैदा की जिससे सरकार को उसके फैसले को पलटने के लिए बाध्य होना पड़ा? इस सवाल पर इसलिए गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि शिक्षकों की नियुक्ति की नई प्रक्रिया एक तरह से आरक्षण को खारिज करने का काम कर रही थी और वह भी तब जब विश्वविद्यालयों में आरक्षित तबकों के शिक्षक तय संख्या से कहीं अधिक कम थे।

आखिर विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नई प्रक्रिया को किस आधार पर न्यायसंगत और सामाजिक न्याय के अनुरूप मान लिया गया? न्याय होना ही नहीं चाहिए, वह होते हुए दिखना भी चाहिए। नि:संदेह यह समझ आता है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती की पुरानी प्रक्रिया को बहाल करने के लिए अध्यादेश लाना सरकार की मजबूरी बन गई थी, लेकिन गत दिवस कैबिनेट में जो अन्य अनेक फैसले लिए गए उनमें से कई एक ऐसे हैं जिनका उद्देश्य यही अधिक लगता है कि सरकार अपने कार्यकाल के आखिर वक्त में तेजी से काम करती हुई दिखना चाहती है। शायद इसीलिए देश में 50 नए केंद्रीय विद्यालय खोलने का फैसला लेने के साथ ही बिजली क्षेत्र में 31 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। इसके अलावा दिल्ली मेट्रो परियोजना के चौथे चरण को स्वीकृति देने के साथ चीनी उद्योग और टेक्सटाइल क्षेत्र के निर्यातकों को राहत देने के कदम उठाए गए। इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य फैसले भी लिए गए।

कैबिनेट के ताजा फैसलों के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बीते कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न योजनाओं-परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करते दिख रहे हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास के साथ उद्घाटन भी किए जा रहे हैं। ये उद्घाटन यही बताते हैं कि सरकार ने काम करके दिखाया है। अपने कामों का प्रचार करना हर सरकार का अधिकार है। इसी तरह आम चुनाव में उतरने के पहले जनता को यह संदेश देना भी सरकार का अधिकार है कि वह तेजी से काम करने वाली सरकार है।

हर सरकार ऐसा ही करती आई है, लेकिन अच्छा होता कि मोदी सरकार ने पहले दिन ही यह तय कर लिया होता कि अगले पांच साल उसे कौन से काम प्राथमिकता के आधार पर करने हैं। अगर ऐसा किया गया होता तो शायद आज उसे कई काम आखिरी समय में करते हुए नहीं दिखना पड़ता। इससे इन्कार नहीं कि इस सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में तमाम काम किए हैं और वे जमीन पर दिख भी रहे हैं, लेकिन शायद प्राथमिकता ढंग से तय नहीं की गई और इसी कारण नई शिक्षा नीति अब तक नहीं आ सकी। ऐसे ही कुछ और काम हैं जो लंबित ही दिख रहे हैं।