प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों के रूप में केंद्रीय मंत्रियों के शपथ ग्रहण के बाद जिस तरह बिना किसी देरी के उनके विभागों का बंटवारा हो गया और इस क्रम में कई प्रमुख मंत्रियों को उनके पुराने विभाग मिल गए, उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि भले ही नई सरकार गठबंधन सरकार हो, लेकिन उसमें प्रधानमंत्री मोदी की पूरी छाप है।

विभागों के बंटवारे से यह भी साफ हुआ कि उन चर्चाओं में कोई तत्व नहीं था कि भाजपा को सहयोगी दलों के दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसका अर्थ है कि गठबंधन सरकार होते हुए भी मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार अतीत की उन मिली-जुली सरकारों से अलग होगी, जिन्हें सौदेबाजी की राजनीति का न केवल सामना करना पड़ता था, बल्कि अपने एजेंडे को लागू करने के मामले में समझौते भी करने पड़ते थे।

दबाव और सौदेबाजी की राजनीति गठबंधन सरकारों का एक नकारात्मक पक्ष है। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि मोदी सरकार गठबंधन राजनीति के इस नकारात्मक पहलू से मुक्त रहेगी। शासन के बेहतर तरीके से संचालन और देश की अपेक्षाओं को पूरा करने की दृष्टि से यही उचित है कि गठबंधन सरकार सहयोगी दलों के अनुचित दबाव से मुक्त रहे।

यह केवल गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले दल के ही हित में नहीं होता, बल्कि सहयोगी दलों के भी हित में होता है, क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण में सहभागी के रूप में देखे जाते हैं और क्षेत्रीय दल होते हुए भी देश भर में उनकी विश्वसनीयता बढ़ती है। अधिकांश प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों को उनके पुराने मंत्रालय मिलने का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी सौ दिन के अपने उस एजेंडे को कहीं अधिक आसानी से पूरा करने में समर्थ होंगे, जिस पर उन्होंने चुनाव परिणाम आने के पहले ही विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था और यह कहा था कि उनकी सरकार तीसरे कार्यकाल में पहले की तरह ही काम करती रहेगी।

यह अच्छा है कि केंद्रीय मंत्रियों ने अपना कार्यभार संभालते ही अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित करना प्रारंभ कर दिया है। चूंकि वे इससे भली तरह अवगत हैं कि देश की जनता को उनसे क्या अपेक्षाएं हैं, इसलिए यही आशा की जाती है कि नई सरकार लोगों की उम्मीदों को पूरा करने में आसानी से सक्षम होगी।

ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन यह तब अधिक सुगमता से संभव हो पाएगा, जब जनाकांक्षाओं से परिचित होने के साथ ही यह भी देखा जाएगा कि सभी सरकारी नीतियां और योजनाएं जमीन पर प्रभावी ढंग से लागू हो रही हैं या नहीं? यह कहना सही नहीं होगा कि विभिन्न मंत्रालयों के सभी एजेंडे सही तरह पूरे हो रहे हैं। वास्तव में नई सरकार के कामकाज में निरंतरता के साथ ही यह भी आवश्यक है कि उसकी गति एवं गुणवत्ता बढ़े और यदि कहीं पर आवश्यक हो तो उसमें बिना किसी देरी के संशोधन-परिवर्तन भी किया जाए।