राहुल गांधी मुस्लिम तुष्टीकरण के कांग्रेस के एजेंडे को किस तरह बिना किसी शर्म-संकोच धार देने में जुट गए हैं, इसका पता इससे चलता है कि अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पहले उन्होंने कहा कि भारत में मुसलमान निशाने पर हैं, फिर उन्होंने केरल में अपने सहयोगी दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को पंथनिरपेक्ष होने का प्रमाण पत्र देते हुए कहा कि उसमें कुछ भी गैर सेक्युलर नहीं है। इसका मतलब है कि उनकी नजर में वह पक्के तौर पर पंथनिरपेक्ष है। उनका यह बयान जीती मक्खी निगलने जैसा और पंथनिरपेक्षता का उपहास है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांप्रदायिक चरित्र पर इस तरह की बातों से पर्दा पड़ने वाला नहीं है कि वह जिन्ना की मुस्लिम लीग से अलग है, क्योंकि सच यही है कि विभाजन के बाद उसका गठन जिन्ना के समर्थकों ने ही किया था।

यह भी एक तथ्य है कि बंटवारे के बाद उसके नेताओं के सांप्रदायिक सोच से नाराज होकर सरदार पटेल ने यह कहकर उन्हें चेताया था कि दो घोड़ों की सवारी मत कीजिए। एक घोड़ा चुन लीजिए और जो पाकिस्तान जाना चाहते हैं, वे जा सकते हैं। सरदार पटेल ने यह कहने में भी संकोच नहीं किया था कि लीग के जो समर्थक महात्मा गांधी को अपना दुश्मन नंबर एक बताते थे, वे अब उन्हें अपना दोस्त कह रहे हैं। भले ही संकीर्ण वोट बैंक की सस्ती राजनीति के चलते आज की कांग्रेस यह सब याद न रखना चाहती हो, लेकिन देश की जनता यह सब नहीं भूल सकती।

यह ठीक है कि वायनाड में राहुल गांधी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के समर्थन से ही चुनाव जीते थे, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि देश भी इन तथ्यों से मुंह मोड़ ले कि इस पार्टी के संस्थापकों में से वे भी थे, जिन्होंने खुले तौर पर पाकिस्तान की पैरवी की थी और संविधान सभा में उसके नेताओं ने शरिया कानून की वकालत की थी। आखिर राहुल गांधी किस मुंह से ऐसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी अतीत वाले दल को पंथनिरपेक्ष होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं? हैरानी नहीं कि कल को वह बंगाल के घोर सांप्रदायिक और नफरती इंडियन सेक्युलर फ्रंट को भी पंथनिरपेक्ष होने का प्रमाण दे दें, क्योंकि कांग्रेस ने पिछला विधानसभा चुनाव उसके साथ मिलकर ही लड़ा था।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग हर लिहाज से एक सांप्रदायिक सोच वाली पार्टी है। यह वही दल है, जिसने जिहादी इस्लामी प्रचारक जाकिर नाइक का इतना खुलकर बचाव किया था कि कांग्रेस को शर्मसार होकर उससे असहमति जतानी पड़ी थी। यह भी किसी से छिपा नहीं कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने किस तरह यह कहा था कि वंदे मातरम मुस्लिम विरोधी है। राहुल गांधी मुस्लिम वोटों की खातिर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के पंथनिरपेक्ष होने का ढिंढोरा पीट सकते हैं, लेकिन इससे उसका सांप्रदायिक चेहरा छिपने वाला नहीं है।