हाईलाइटर -
राज्य सरकार को सरकारी अस्पतालों, खासकर मेडिकल कॉलेजों में ऐसा प्रबंध करना होगा जिससे आम लोगों को सुविधाओं के लिए भटकना न पड़े। फिलहाल इन अस्पतालों में कुप्रबंध के कारण स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहाल है।
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राज्य सरकार दावा भले ही कर ले पर सच यह है कि सरकारी अस्पतालों की दशा अभी सुधरती नजर नहीं आ रही। रविवार को मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में जो वाकया सामने आया है, उसने मानवता को शर्मसार करने के साथ सरकारी अस्पतालों की कुव्यवस्था को उजागर कर दिया है। उत्तर बिहार के इस दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेज में गंभीर रूप से बीमार होने पर एक दिन पहले भर्ती कराई गई वृद्धा की मौत के बाद के बाद उसके परिजन शव को घर ले जाने के लिए कर्मचारियों से सरकारी वाहन देने की गुहार करते रहे, परंतु किसी का गरीब परिवार के प्रति दिल नहीं पसीजा। इससे ज्यादा अचरज की बात यह है कि सरकारी वाहन न मिलने पर अस्पताल के बाहर खड़े निजी वाहन वाले भी गरीब परिवार की मदद को आगे नहीं आए। वे अस्पताल से महज पंद्रह किलोमीटर दूर घर तक शव ले जाने के लिए आठ सौ रुपये लेने की जिद पर अड़े रहे, परिजन पांच सौ रुपये देने को तैयार भी थे, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। मजबूरन दामाद को अपनी सास का शव मोटरसाइकिल पर लादकर ले जाना पड़ा और तमाशबीन यह सब देखते रहे। गुहार के बाद शव ले जाने को सरकारी वाहन न मिलना इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था सरकार की मर्जी से नहीं, बल्कि प्रबंध तंत्र की इच्छा से चल रही है। वैसे मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना पर एसकेएमसीएच के अधीक्षक ने अस्पताल प्रबंधक से पूरे मामले में रिपोर्ट मांगी है। इस घटना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि रविवार को ही पटना में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने यह दावा किया कि सरकारी अस्पतालों के बेड पर अब कुत्ते नहीं सोते। जाहिर है उन्हें आला अफसरों से यही सूचनाएं मिल रही होंगी कि सरकारी अस्पतालों की हालत पहले से काफी सुधरी है। वहां मरीजों की सुख-सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाता है और जरूरी दवाएं मिल रही हैं। जबकि राजधानी में दो मेडिकल कॉलेजों पीएमसीएच और एनएमसीएच की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। आए दिन इलाज में कोताही को लेकर इन दोनों मेडिकल कॉलेज में हो-हल्ला और बवाल होता रहता है। अक्सर मरीजों के परिजनों और जूनियर डॉक्टरों में भिडं़त भी हो जाती है, मामला पुलिस तक पहुंचने के बाद स्थिति नियंत्रित होती है अथवा कामकाज ठप कर दिया जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार में बैठे ऊपर के लोग और मुखिया नीतीश कुमार आमजनों को नागरिक और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने को संकल्पित हैं, परंतु उन्हें ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी हो सके। ताकि आम लोगों के बीच सरकार की छवि अच्छी बनी रहे।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]