राजधानी के नगड़ी क्षेत्र स्थित चेटे गांव में पीएलएफआइ उग्रवादियों ने लेवी न देने पर कंस्ट्रक्शन कंपनी के इंजीनियर और मुंशी को मौत की नींद सुलाकर पुलिस के दावों की कलई खोल दी। पुलिस का दावा था कि वह निर्माण साइट्स पर पूरी सुरक्षा मुहैया करा रही है। कंस्ट्रक्शन कंपनी यहां हटिया-राउरकेला रेलखंड के दोहरीकरण का काम करा रही है। घटना से एक दिन पूर्व ही पीएलएफआइ के दो उग्रवादियों को खूंटी में मार गिराने का जश्न मना रही पुलिस को उग्रवादी यह संदेश देने में भी कामयाब रहे कि हम पुलिस मुख्यालय की नाक के नीचे मौजूद हैं। वाकई, जिस प्रकार उग्रवादियों ने इस वारदात को अंजाम दिया, उससे पता चलता है कि उग्रवादी अब जंगलों से निकल कर प्रदेश की राजधानी में प्रवेश कर चुके हैं। वे पुलिस को उस शहर में चुनौती दे रहे हैं, जहां उसका मुख्यालय है। उसके आलाधिकारी बैठते हैं। ऐसे में पुलिस के समक्ष भी यह गंभीर संकट पैदा हो गया है कि वह राजधानी की आम जनता को यह भरोसा दिलाए कि वह उनकी सुरक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम है।

गौरतलब है कि राज्य में चल रही रेलवे परियोजनाओं की साइट्स पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने को लेकर पुलिस मुख्यालय में छह माह में दो बड़ी बैठकें हो चुकी हैं। इनमें डीजीपी, एडीजी रैंक के अधिकारी, रेलवे के अफसर, ठेकेदार, इंजीनियर व रेलवे से जुड़ी सुरक्षा एजेंसियां शामिल हुई थीं। बैठकों में कहा गया था कि निर्माण स्थलों पर जहां-जहां सुरक्षा संबंधी परेशानियां आएंगी, उन्हें दूर किया जाएगा। सुरक्षा के अभाव में निर्माण कार्य बाधित नहीं होंगे। लेकिन इसी बीच उग्रवादियों ने राजधानी के इलाके में अपनी धमक दिखा दी। इसके अलावा पिछले कुछ माह के दौरान रांची में लगातार शूटआउट के जरिए हो रही हत्याओं ने भी रांची की लचर पुलिसिंग और खुफिया तंत्र की कमजोरी को बेनकाब किया है। दरअसल, उग्रवादी अब नई रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे पुलिस के फोकस क्षेत्रों से इतर उसकी नाक के नीचे अपने नए प्लेटफॉर्म तैयार कर रहे हैं। नक्सली संगठन के एरिया कमांडर, पोलित ब्यूरो के सदस्य, पीएलएफआइ के जोनल कमांडर, टीपीसी के मारक दस्ते के सदस्य रांची को सेफ जोन बना चुके हैं। वे यहां अपनी पहचान छिपाकर आम जन के बीच में रह रहे हैं, जो मौका मिलते ही राजधानी में कभी भी किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। इनसे निपटना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है।

[स्थानीय संपादकीय- झारखंड]