यह बात वैसे तो पूरे देश पर लागू है यद्यपि बिहार के संदर्भ में बेहद प्रासंगिक है कि जब तक किसान खुशहाल नहीं होंगे, राज्य का विकास नहीं हो सकता। इसकी वजह यह है कि इस राज्य की आबादी में किसानों की दर किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले अधिक है। जाहिर है कि कृषि और किसान ही राज्य की प्रगति के आधार और संकेतक हैं। यह मानते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तीसरा कृषि रोडमैप लागू किए जाने को राज्य के विकास की राह पर एक अहम पड़ाव माना जाना चाहिए। सुखद संयोग है कि गत जून तक बिहार के राज्यपाल रह चुके देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस रोडमैप का लोकार्पण करेंगे। पांच साल पहले दूसरे रोडमैप का लोकार्पण तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया था। बिहार अपने युवाओं और किसानों के जज्बे एवं जुनून के लिए पहचान रखता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कृषि सेक्टर के बूते राज्य की विकास दर काफी ऊंची चल रही है। बहरहाल, इसके बावजूद किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। तीसरे कृषि रोडमैप में अगले पांच साल में किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है। यदि यह लक्ष्य हासिल किया जा सका तो राज्य को विकास की राह पर कुलाचें भरने से रोका नहीं जा सकेगा। कृषि रोडमैप लागू करते समय किसानों की मूल समस्याओं पर गौर किया जाना जरूरी है। किसानों की बड़ी समस्या उन्हें उनकी उपज का वाजिब मूल्य न मिलना है। राज्य में बिचौलियों का बेहद सशक्त नेटवर्क है जो किसानों और उपभोक्ताओं के बीच असली 'मलाई' काटते हैं। शातिर बिचौलिये किसानों की तंगहाली का लाभ उठाकर उन्हें अपने कर्ज-जाल में फंसा लेते हैं और फिर उनका अंतहीन शोषण शुरू हो जाता है। राज्य सरकार को कोई ऐसा प्रभावी उपाय करना होगा ताकि किसान बिचौलियों के शोषण से मुक्त हो जाएं। केंद्र सरकार ने बिचौलिया-मुक्त कृषि व्यवस्था के लिए बेहद असरदार ऑनलाइन मंडी प्रणाली लागू की है किन्तु इस प्रणाली का लाभ उठा रहे राज्यों में बिहार आश्चर्यजनक ढंग से शामिल नहीं है। यह देखा जाना चाहिए कि ऐसा क्यों है जबकि बिहार को ऐसी प्रणाली की सर्वाधिक जरूरत है। जब तक किसान बिचौलियों के जाल से मुक्त नहीं होंगे, उनकी आय बढ़ाने के प्रयास कारगर नहीं होंगे।
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किसानों को उनकी उपज का जो मूल्य मिलता है, वह उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते दोगुने से अधिक हो जाता है। यह कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा संकट है। कृषि को बिचौलियों से मुक्ति दिलाना नए कृषि रोडमैप की असली कसौटी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]