किसी भी विवाद के समाधान का आसान उपाय यह होता है कि बीच के रास्ते की तलाश की जाए। ऐसे किसी मामले में तो ऐसा करना और भी आवश्यक हो जाता है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने रवैये पर अड़े हों, लेकिन संसद में जारी गतिरोध को दूर करने के मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश कह रहे हैं कि बीच का कोई रास्ता ही नहीं है। यह अड़ियल रवैया है और इसका अर्थ है कि कांग्रेस अपनी इस मांग पर अड़ी रहेगी कि अदाणी मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से कराई जाए।

हैरानी नहीं कि इसके जवाब में सत्तापक्ष इस पर अड़ जाए कि राहुल गांधी को अपने उस बयान के लिए माफी मांगनी ही होगी, जो उन्होंने लंदन में दिया और जिसमें यह कहा कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो जाने पर अमेरिका और यूरोप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं। यदि ऐसा होता है, जिसके आसार भी दिख रहे हैं तो संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण बिना किसी कामकाज के समाप्त हो सकता है। इस स्थिति में वित्त विधेयक बिना किसी बहस पारित कराने की नौबत आ सकती है। इससे सबसे अधिक हानि विपक्ष की ही होगी, लेकिन शायद वह इस पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं। यदि संसद नहीं चली तो लगभग तीन दर्जन प्रस्तावित विधेयक भी ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। इससे सत्तापक्ष और विपक्ष की सेहत पर भले ही कोई असर न पड़े, लेकिन देश का नुकसान होना तय है।

यह समझ आता है कि कांग्रेस और उसके साथ खड़े दल इस पर जोर दें कि अदाणी मामले की जांच हो, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि जांच जेपीसी से कराने की जिद पकड़ी जाए। वित्तीय मामलों और विशेष रूप से शेयर बाजार से जुड़े मामलों की जांच जेपीसी से कराने का अब तक अनुभव यही बताता है कि जांच का यह तरीका समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं होता। जेपीसी के जरिये शायद ही किसी मामले की तह तक पहुंचा जा सका हो। जेपीसी की जांच दलगत राजनीति का अखाड़ा भर बनकर रह जाती है।

जब सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति इस मामले की जांच कर रही है और इस समिति के समस्त सदस्य शीर्ष अदालत ने स्वयं तय किए हैं, तब फिर जेपीसी जांच की मांग पर बल देने का कोई मतलब नहीं। क्या विपक्ष और विशेष रूप कांग्रेस यह कहना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति अदाणी मामले की जांच सही तरह नहीं कर पाएगी? क्या उसे सुप्रीम कोर्ट और उसकी समिति पर भरोसा नहीं? जो भी हो, अदाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने की मांग के जवाब में जिस तरह राहुल गांधी से माफी मांगने पर जोर दिया जा रहा है, उससे संसद बंधक सी बनी दिखने लगी है।