वैसे तो गाय का पूरी दुनिया में काफी महत्व है, लेकिन हरियाणा के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह हमारे प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। गोप्रेमी होने के कारण शरीर सौष्ठव में हरियाणवियों का कोई सानी नहीं। गोप्रेम से ही यह कहावत बनी-देसा मं देस हरियाणा, जित दूध दही का खाणा। यह गो प्रेम ही था, जिसने हरियाणा को समृद्ध बनाया। इसे लगभग डेढ़ सौ साल पहले ब्राजील ने समझा और यहां से गोधन ले जाकर उनके माध्यम से अपनी अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ कर ली। रेखांकित करने वाली बात यह है कि ब्राजील गई भारतीय नस्ल की गायें अब दुनिया में नंबर वन बनती जा रही हैं। करीब 20 करोड़ की आबादी वाले ब्राजील की जितनी आबादी है, उतनी गायें हैं। इनमें से 17 करोड़ गायें अकेले भारतीय तथा हरियाणवी नस्ल की हैं।

ब्राजील के दौरे पर गए हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ इन गायों को देखकर अभिभूत हो गए। उन्होंने ब्राजील की तर्ज पर हरियाणवी व भारतीय गायों की नस्लों में सुधार का कार्यक्रम लागू करने का घोषणा की है। ब्राजील ने 1850 से भारतीय गिर, रेड सिंधी, कांकरेज, नेलोरी, ओंगले, पुंगानूर व कांगायम नस्लों को ले जाना आरंभ किया था। 1960 तक यह क्रम चलता रहा। ब्राजील ने नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाते हुए भारतीय गायों की नस्लों को और विकसित किया। अब हरियाणा यही करने जा रहा है। यदि हम ब्राजील का अनुसरण करते हैं तो गोधन के जरिये समृद्धि के नए कीर्तिमान रच सकते हैं। वैसे तो यह हमारी गलती थी कि हमने गोधन पर बीच के कालखंड में ध्यान नहीं दिया, लेकिन विलंब से ही सही सरकार यदि पूर्व की त्रुटि सुधारते हुए ब्राजील से प्रेरणा ले रही है तो यह अभिनंदनीय है।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]