कोरोना संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के बीच प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक के बाद न केवल संक्रमण पर लगाम लगाने के उपायों पर और गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए, बल्कि इस पर भी गौर किया जाए कि ये उपाय आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर न डालने पाएं। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि कई राज्य सरकारें संक्रमण की रोकथाम के लिए ऐसे कदम उठाने में लगी हुई हैं, जो एक तरह से लाकडाउन सरीखे हैं। इससे कई उद्योग-धंधों पर विपरीत असर पड़ना शुरू हो गया है और कहीं-कहीं तो कामगारों की वापसी के आसार भी उभर आए हैं। न केवल कामगारों की वापसी के अंदेशे को हर हाल में दूर किया जाना चाहिए, बल्कि इसके प्रयास किए जाने चाहिए कि संक्रमण की तीसरी लहर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर न्यूनतम असर डाले। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दुनिया के कई देशों में जहां कोरोना संक्रमण कहीं अधिक तेज है, वहां कठोर पाबंदियां लगाने से बचा जा रहा है। वास्तव में पाबंदियों से अधिक जरूरत लोगों को इसके लिए सचेत करने की है कि वे मास्क का इस्तेमाल करें, भीड़-भाड़ से बचें और सार्वजनिक स्थलों पर शारीरिक दूरी बनाए रखने के नियम का पालन करें।

जहां सरकारों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने स्वास्थ्य तंत्र को सजग-सक्रिय करें, वहीं आम लोगों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे संक्रमण से बचे रहने के लिए सावधानी का परिचय दें। अभी इसका अभाव दिख रहा है। यह और कुछ नहीं, खुद के साथ औरों की सेहत से खिलवाड़ करने वाला रवैया है। यह ठीक नहीं कि सार्वजनिक स्थलों पर न जाने कितने लोग बिना मास्क के दिख रहे हैं और वह भी तब, जब यह स्पष्ट है कि कोरोना वायरस का नया प्रतिरूप ओमिक्रोन कहीं अधिक तेजी से लोगों को संक्रमित करता है। राज्य सरकारों को टीकाकरण की रफ्तार और तेज करने पर भी ध्यान देना होगा। इस क्रम में उन लोगों तक पहुंच बढ़ानी होगी, जिन्होंने अभी टीके की पहली खुराक भी नहीं ली है। प्रधानमंत्री ने टीकाकरण के संदर्भ में हर घर दस्तक अभियान तेज करने की जो जरूरत जताई, उसकी पूर्ति वास्तव में होनी चाहिए। इससे ही शत-प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा। यह सही समय है कि इस पर भी विचार किया जाए कि क्या साठ वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को कोविड रोधी टीके की बूस्टर डोज दी जानी चाहिए? चूंकि अब टीके की कमी जैसी कोई समस्या नहीं है इसलिए उन लोगों को भी बूस्टर डोज देने के बारे में सोचा जाना चाहिए, जिन्हें टीके की दोनों खुराक लिए हुए आठ-नौ माह बीत चुके हैं।