पिछले कुछ समय से एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण कचरा निस्तारण में लापरवाही बरतने अथवा पर्यावरण की अनदेखी के कारण एक के बाद एक राज्यों पर जुर्माना लगाने में लगा हुआ है। गत दिवस उसने राजस्थान सरकार पर तीन हजार करोड़ रुपये का जुर्माना इसलिए लगाया, क्योंकि राज्य के कुछ शहरों में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को नदियों में उड़ेला जा रहा था, तो कुछ में कचरे का निस्तारण ढंग से नहीं किया जा रहा था। इसके पहले एनजीटी ने महाराष्ट्र सरकार पर 12 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करने में नाकामी के चलते लगाया था।

इसके कुछ और पहले वह बंगाल सरकार पर सीवेज शोधन संयंत्रों को सही तरह संचालित न करने के कारण 3500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुका है। इसके अतिरिक्त एनजीटी उत्तर प्रदेश सरकार को कचरे का उचित प्रबंधन न कर पाने के कारण पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में 120 करोड़ रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दे चुका है।

हाल के दिनों में एनजीटी पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के कारण कई राज्य सरकारों अथवा उनके नगर निकायों के खिलाफ लगातार सख्ती दिखा रखा है। यह सख्ती यही बताती है कि राज्य सरकारें, उनके नगर निकाय और प्रदूषण की रोकथाम करने वाले विभाग अपने दायित्वों का सही तरह निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं। यह स्थिति पूरे देश और यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भी देखने को मिल रही है।

करीब दो सप्ताह पहले एनजीटी ने यमुना में बढ़ते प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को फटकार लगाते हुए अपना असंतोष प्रकट किया था। यह भी किसी से छिपा नहीं कि दिल्ली में कूड़े के पहाड़ बढ़ते जा रहे हैं। इसे लेकर दिल्ली सरकार और नगर निगम के बीच आरोप-प्रत्यारोप तो जारी रहता है, लेकिन इसके कोई आसार नहीं दिखते कि देश की राजधानी को कचरे के पहाड़ों से छुटकारा मिलेगा।

स्वच्छता अभियान जारी रहने के बावजूद कचरा निस्तारण में हीलाहवाली और कारखानों से निकलने वाले विषाक्त पानी को नदियों में छोड़ना एक ऐसी समस्या है, जिसका कोई ठोस समाधान होता नहीं दिखता। इसमें संदेह है कि राज्य सरकारों पर जुर्माना लगाने से यह समस्या हल हो जाएगी, क्योंकि न तो कचरे के निस्तारण की कोई कारगर व्यवस्था बन पा रही है और न ही इस पर ध्यान दिया जा रहा है कि सीवेज शोधन संयंत्र सही तरह संचालित हों।

यदि स्वच्छता अभियान अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है तो इसके लिए जितनी जिम्मेदार राज्य सरकारें और उनके नगर निकाय हैं, उतना ही लोगों की यह मानसिकता कि कचरे का निस्तारण करना केवल सरकारों की जिम्मेदारी है। यदि गंदगी और प्रदूषण से लड़ना है तो आम नागरिकों से लेकर नगर निकायों को अपनी जिम्मेदारी का सही तरह निर्वाह करना होगा।