शादी के बाद गांव को भोजन कराने की बाध्यता के कारण गांवों में कई जोड़े बिना ब्याह के लिव-इन रिलेशन में जिंदगी गुजार देते हैं। सरकार इन्हें कानूनी मान्यता देने में जुट गई है।

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कई मामलों में पिछड़े झारखंड जैसे राज्य के सुदूर गांवों में लिव-इन रिलेशन की बात खुलकर सामने आई है। सिर्फ खूंटी के छह गांवों में ऐसे दर्जनों जोड़ों की पहचान हुई है। इनमें से कई जोड़े ऐसे भी हैं, जो अधेड़ उम्र के हैं और उनके वयस्क बच्चे भी हैं। संबंधित क्षेत्र में काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था की इस खोज ने सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। बहरहाल बिन ब्याहे माता-पिता बन चुके ऐसे 51 जोड़ों की सरकार ने पिछले दिनों शादी कराई और उनके रिश्ते को कानूनी मान्यता दिलाई। इन जोड़ों को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से जोडऩे की तैयारी है। साथ ही इन परिवारों को आजीविका के विभिन्न साधनों से भी जोडऩे का खाका तैयार हो रहा है। सरकार की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए। इससे इतर देखना यह होगा कि आखिर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न क्यों हो रही हैं। प्रथम दृष्ट्या इस मामले में जो बातें उभर कर आई हैं, उनमें गरीबी पहले पायदान पर है। लिव-इन रिलेशन में कई दशकों से रहते आ रहे इन जोड़ों में से अधिकतर का एक ही दर्द है, शादी के बाद पूरे गांव को भोजन कराने की बाध्यता। वे इस परंपरा के निर्वहन में खुद को मजबूर पाते हैं। नतीजतन बिन ब्याह के घर बसाने की परंपरा का वे निर्वहन करते आए हैं।

अगर ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक स्तर पर मजबूत होंगे तो इस तरह की विसंगतियां स्वत: दूर होती चली जाएंगी। बहरहाल ऐसी विसंगति राज्य के 24 जिलों में से सिर्फ एक खूंटी में पकड़ में आई है। ऐसे में अन्य जिलों में भी इसकी पड़ताल की जानी चाहिए। इतना ही नहीं, समाज के ऐसे ज्वलंत मसलों के निराकरण के लिए नीति बनाने की जरूरत है। बहरहाल अपने तरह की इस नायाब घटना पर सरकार ने माथापच्ची शुरू कर दी है। इस विसंगति को दूर करने, ऐसे जोड़ों को ढूंढ निकालने वाले संगठनों को सरकार ने प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है। साथ ही हाशिये पर जी रहे ऐसे जोड़ों को विकास योजनाओं से सीधे जोडऩे की नसीहत दी है। सरकार ने जहां जरूरत पडऩे पर इससे जुड़े कानूनों में बदलाव के संकेत दिए हैं, वहीं सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों को इस कुरीति को दूर करने के लिए एक मंच पर आने की नसीहत दी है। देखना यह होगा कि सरकार की यह कोशिश क्या रंग लाती है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]