जागरण संपादकीय: बेहाल बांग्लादेश, हिंसक घटनाक्रम के बाद चिंतित कई देश
बांग्लादेश में एक अर्से से भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। उनका भारत विरोधी चेहरा आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान भी दिखा। यह ठीक नहीं कि हिंसक प्रदर्शनकारी अभी भी हिंदुओं और उनके मंदिरों के साथ भारतीय प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन ने पाकिस्तानी तत्वों के जरिये शेख हसीना विरोधी आंदोलन को हवा दी।
करीब सात महीने पहले फिर से सत्ता में आईं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को जिस तरह आनन-फानन देश छोड़कर भारत आने के लिए विवश होना पड़ा, उससे यही पता चलता है कि हालात किस कदर उनके खिलाफ हो गए थे।
इसे इससे भी समझा जा सकता है कि उनका इस्तीफा मांग रहे प्रदर्शनकारियों ने उनके सरकारी आवास में घुसकर तो तोड़फोड़ की ही, उनके पिता एवं बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीब की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने के साथ उनके नाम पर बने एक संग्रहालय को भी जला दिया।
जैसी आशंका थी, शेख हसीना के पलायन करते ही सेना ने सत्ता संभाल ली और मिली-जुली अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा की। शायद सेना इसकी तैयारी पहले से कर रही थी। शेख हसीना लगातार चौथी बार ऐसे चुनावों के जरिये सत्ता में आईं थीं, जिनका प्रमुख विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया था।
चूंकि शेख हसीना ने अपने लंबे शासनकाल में बांग्लादेश को स्थिरता प्रदान की और उसे आगे बढ़ाया, इसलिए उनकी सत्ता को कोई खतरा नहीं दिख रहा था, लेकिन कुछ समय पहले आरक्षण के खिलाफ छात्रों की ओर से शुरू हुआ आंदोलन उनके लिए मुसीबत बन गया।
इस आंदोलन को शीघ्र ही शेख हसीना के सभी विरोधियों और साथ ही ऐसे कट्टरपंथी संगठनों ने भी समर्थन दे दिया, जो पाकिस्तान की कठपुतली माने जाते हैं। इसके चलते आरक्षण विरोधी आंदोलन सत्ता परिवर्तन के हिंसक अभियान में बदल गया। लगता है शेख हसीना विरोधियों की चाल भांप नहीं सकीं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में भारी कटौती कर दी, लेकिन विरोधी संतुष्ट नहीं हुए। वे शेख हसीना का इस्तीफा मांगने पर अड़ गए। आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और उसमें तीन सौ लोगों के मारे जाने के कारण शेख हसीना की छवि एक अधिनायकवादी शासक की बनी और पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका उनकी निंदा करने में मुखर हो उठा।
अमेरिका उनकी नीतियों से पहले से ही खफा था, क्योंकि वह मानवाधिकार और लोकतंत्र पर उसकी नसीहत सुनने को तैयार नहीं थीं। बीजिंग और नई दिल्ली के बीच संतुलन साधने की शेख हसीना की नीति से चीन भी उनसे रुष्ट था और इसी कारण उन्हें हाल की अपनी चीन यात्रा बीच में छोड़कर लौटना पड़ा था।
इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन ने पाकिस्तानी तत्वों के जरिये शेख हसीना विरोधी आंदोलन को हवा दी। उनका सत्ता से बाहर होना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं, क्योंकि वह नई दिल्ली के प्रति मित्रवत थीं। यदि सेना के प्रभुत्व वाली अंतरिम सरकार चीन के प्रभाव में काम करती है तो यह भारत के लिए और अधिक चिंता की बात होगी।
बांग्लादेश में एक अर्से से भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। उनका भारत विरोधी चेहरा आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान भी दिखा। यह ठीक नहीं कि हिंसक प्रदर्शनकारी अभी भी हिंदुओं और उनके मंदिरों के साथ भारतीय प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं।