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फ्लैश--
बिहार में भविष्य में गंगा पर आठ पुल होंगे तो विकास का मार्ग अपने आप प्रशस्त हो जाएगा। हालांकि आम लोगों की परेशानी को देखते हुए इन पुलों का निर्माण समय पर पूरा करना जरूरी है।
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सड़क और पुल-पुलिया विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दूसरे राज्यों के बनिस्बत बिहार इनकी बहुत कमी झेल रहा है। राज्य के कई इलाके अब भी अंग्रेजों के जमाने में बने पुल-पुलिया पर निर्भर हैं, रात के अंधेरे में इनसे गुजरने में दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पश्चिम बिहार को पूरब से जोडऩे वाले कोईलवर रेल सह सड़क पुल अग्रेजों के जमाने में ही बना था जिसके समानांतर पुल बनाने की पहल अब शुरू हुई है। अवाम के लिए खुशी की बात है कि पिछले दस सालों में राज्य का नेतृत्व मूलभूत सुविधाओं पर अपना ध्यान फोकस करते हुए सड़क, पुल और पुलिया का जाल बिछाने में लगा हुआ है। सरकारी पुल निर्माण एजेंसी इसमें आत्मनिर्भर हो गई है। कभी पटना को हाजीपुर के रास्ते उत्तर बिहार से जोडऩे वाला गंगा पर बना महात्मा गांधी सेतु एशिया के लिए नजीर बना था, आज इसकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि एक लेन भी अच्छी तरह काम नहीं कर रही। बड़े वाहनों की आवाजाही के लिए अब भी इसका इस्तेमाल करना मजबूरी बना हुआ है। तकरीबन दस सालों से यह पुल लोगों को ज्यादा रुला रहा है। हालांकि इसकी जर्जर हालत ही केंद्र और राज्य सरकार को यह आवश्यकता महसूस कराने में सफल हुई है कि वाहनों के बढ़ते बोझ और मध्य बिहार की उत्तरी इलाकों से कनेक्टिवटी के लिए इस पुल की मरम्मत के बाद भी काम चलने वाला नहीं है। जापानी कंपनी इसकी मरम्मत में जुटी है। लोकसभा चुनाव के वक्त गांधी सेतु प्रमुख मुद्दा था। उस समय सत्तारूढ़ जदयू राजग का हिस्सा नहीं था, इसलिए दोनों के शीर्ष नेताओं ने इसके समानांतर अपने-अपने स्तर से पुल बनाने की घोषणा कर डाली थी। जदयू ने तो एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से पांच हजार करोड़ की लागत वाले कच्ची दरगाह से शुरू होकर बिदुपुर तक के लिए इस गंगा सेतु का शिलान्यास भी करा दिया था। राजग नेताओं ने भी यह घोषणा कर दी थी कि राज्य सरकार के पुल की वजह से उनका पुल नहीं रुकेगा। अब पटना के रास्ते गंगा पार के लिए एक-दो नहीं बल्कि भविष्य में आठ पुल बन जाएंगे। गत दिवस केंद्र से दीघा-सोनपुर पुल के समानांतर नए फोरलेन पुल की मंजूरी मिलने के बाद राजधानी के पश्चिमी इलाके से उत्तर बिहार का जुड़ाव सघन हो जाएगा। गंगा पर नए पुलों की सौगात मिलने में भले पांच-दस साल लग जाएं, पर यह तय है कि अगले पचास-सौ साल तक आम लोगों की दिक्कतें खत्म करने का प्रयास शुरू हो गया है। उम्मीद यह की जानी चाहिए कि नए पुल समय से बनें ताकि बिहार के विकास को पंख लगें।

[ स्थानीय संपादकीय:  बिहार ]