यह सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि नव वर्ष के आगमन के पहले इस पर भी चिंतन-मनन होता है कि जो समय गुजर गया उसमें क्या खोया और पाया, लेकिन बीते हुए वक्त से कुछ सीख लेना ही बेहतर होता है। इससे ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को आगे ले जाने में मदद मिलती है। यह समय इसी पर मंथन का है कि समाज और राष्ट्र के भविष्य को बेहतर दिनों की ओर कैसे ले जाया जाए? इसके लिए जो चीज सबसे ज्यादा जरूरी है वह है सकारात्मक सोच और विचार।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में यह जो कहा कि इस पर विचार हो कि हम ऐसा क्या करें जिससे अपने स्वयं के जीवन में बदलाव ला सकें और साथ-ही-साथ देश एवं समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकें वह नव वर्ष के लिए एक ऐसा संदेश है जिसे सकारात्मक भाव से ग्रहण करने की कोशिश सभी को करनी चाहिए। इसलिए करनी चाहिए, क्योंकि एक तो यह कोई राजनीतिक बात नहीं है और दूसरे इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि विभिन्न क्षेत्रों में नकारात्मकता कुछ ज्यादा ही हावी होती दिख रही है। दुर्भाग्य से राजनीति में कुछ ज्यादा ही नकारात्मकता हावी हो गई है। ऐसा होना न तो राजनीति के हित में है और न ही समाज और राष्ट्र के, क्योंकि यह राजनीति ही है जो समाज और देश को दिशा देने का काम करती है। यदि समाज और देश को दिशा देने वाली व्यवस्था ही नकारात्मकता से घिर जाएगी तो फिर सकारात्मकता का वास कैसे होगा।

यदि राष्ट्रीय जीवन में सकारात्मकता के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होगा तो फिर समाज और राष्ट्र को आगे ले जाने वाली प्रेरणा के स्नोत भी सूखते दिखेंगे। शायद प्रधानमंत्री ने इसीलिए सकारात्मकता फैलाने पर बल देते हुए अनेक ऐसे साधारण लोगों का उल्लेख किया जिन्होंने अपनी लगन और संकल्प शक्ति के बल पर हालात बदलने के काम किए हैं। ऐसे सभी लोग प्रेरणा स्नोत बनने चाहिए। यह सही है कि समाज और राष्ट्र के रूप में हमें अभी बहुत कुछ अर्जित करना है और ऐसा लंबा सफर तय करना शेष है जिसमें तमाम बाधाएं दिख रही हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम नकारात्मकता और निराशा से घिर जाएं। विडंबना यह है कि हमारा राजनीतिक विमर्श ऐसी ही तस्वीर पेश करता है।

यह रुदन न तो ठीक है और न ही इसे स्वीकार किया जा सकता है कि सब कुछ खराब है और देश के हालात ठीक नहीं। बेशक तमाम समस्याएं हैं, लेकिन उनका समाधान भी है। देश में बहुत कुछ बदलने की आवश्यकता है, लेकिन पहली आवश्यकता राजनीतिक विमर्श में व्यापक संशोधन-परिवर्तन लाने और उसे सकारात्मक सोच से लैस करने की है। आज तो स्थिति यह है कि अच्छी और बुरी राजनीति में कोई भेद ही नहीं नजर आता। राजनेताओं के छल-छद्म भरे व्यवहार को भी राजनीति की संज्ञा दी जा रही है। ऐसी राजनीति किसी का भी भला नहीं कर सकती। यह समय की मांग है कि देश की राजनीति नकारात्मकता से मुक्त हो, क्योंकि वह कलह का वातावरण पैदा करने के साथ ही आम आदमी को निराश हताश करने का भी काम करती है।