2012 में कांग्रेस से नाता तोडऩे के बाद से मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी लगातार गैर-कांग्रेसी व गैर-भाजपाई फेडरल फ्रंट के गठन की हिमायती रही हैं। 2012 में जब राष्ट्रपति चुनाव हुआ था, उस समय भी समाजवादी पार्टी के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव समेत कई दलों से संपर्क कर उन्होंने अलग फ्रंट गठित करने की कोशिश की थी लेकिन ऐन वक्त पर मुलायम ने यू टर्न मार दिया और नया फ्रंट ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद जब 2014 में लोकसभा चुनाव का एलान हुआ तो फिर से ममता ने फेडरल फ्रंट गठित करने की कोशिशें शुरू कर दीं। इसके लिए वे कई बार दिल्ली भी गईं। कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मुलाकात भी की। समाजसेवी अन्ना हजारे को भी अपने पाले में लाने की कोशिश की लेकिन उनका साथ नहीं मिला। हारकर ममता 'एकला चलो' की नीति पर बढ़ गईं। अब भाजपा की नजर पश्चिम बंगाल पर है। उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों में भाजपा को समाजवादी व बहुजन समाज पार्टी के एकजुट होने के बाद मिली करारी हार ने क्षेत्रीय दलों को नई ऊर्जा दी है। वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री व टीआरएस के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव भी तीसरे मोर्चे यानी फेडरल फ्रंट की वकालत में उतर आए हैं। सोमवार को कोलकाता पहुंचकर चंद्रशेखर राव ने ममता के साथ बैठक कर फेडरल फ्रंट बनाने के लिए जमीन तैयार करने की बात कही।

राजग से अलग हुए चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा से भी वह संपर्क साध रही हैं। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ममता का फेडरल फ्रंट बनाने का नया प्रयास कितना कामयाब होता है, ये तो वक्त बताएगा। इस समय भारतीय राजनीतिक दल दो भागों में बंटे हुए हैं। एक गुट भाजपा के साथ हैं तो दूसरा कांग्र्रेस के साथ। ऐसे में क्या गैर-भाजपाई व गैर-कांग्रेसी दल फिर से एकजुट होकर 2019 के लोकसभा चुनाव में देश की जनता के समक्ष विकल्प पेश कर पाएंगे? क्या जनता को स्वीकार होगा कि देश की सत्ता ऐसे फ्रंट के पास जाए, जो एक-दूसरे की बैशाखी पर चलने वाली हो? या फिर एक मजबूत सरकार बने? लोग देख चुके हैं कि मोरारजी देसाई से लेकर वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का क्या हाल हुआ था? हालांकि, 1999 व 2004 से 2014 में भी गठबंधन की सरकार ही रही लेकिन इसमें महती भूमिका भाजपा व कांग्रेस की थी। ऐसे में फेडरल फ्रंट का क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्त में है।

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(हाइलाइटर :: क्या जनता को स्वीकार होगा कि देश की सत्ता ऐसे फ्रंट के पास जाए, जो एक-दूसरे की बैशाखी पर चलने वाली हो?) 

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]