शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिस तरह शेरनी करार दिया है उससे राजनीतिक हलकों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। उद्धव का यह भी कहना है पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अकेले 34 वर्षों के कम्युनिस्ट शासन का अंत कर दिया। कांग्रेस और भाजपा बंगाल में जो काम नहीं कर सकी वह ममता ने अकेले कर दिखाया।
ममता अपनी लड़ाकू छवि के लिए बंगाल की शेरनी समझी जा सकती है, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन इसके साथ ही उद्धव ने एक शब्द जोड़ा है जिसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। उनका कहना है कि ममता की तरह शिवसेना भी कम्युनिस्टों का विरोध करती रही है। ऐसा कहकर उद्धव क्या यह बताना चाहते हैं कि ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना में समानता है। हालांकि ममता जिस तरह से सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध लड़ रही हैं उसके मुताबिक तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना दो विपरीत धु्रव की पार्टी है। अब दोनों पार्टियां एक दूसरे के करीब आना चाहती हैं तो इसकी कुछ खास वजह है।
पिछले सप्ताह ममता जब मुंबई दौरे पर गई थीं तो उद्धव ठाकरे ने उनसे मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच कुछ देर तक बैठक चली। राजग में रहते हुए केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए ममता ने उद्धव की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की। ममता केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का विरोध करती रही है। नोटबंदी, जीएसटी और कुछ सेवाओं में आधार को अनिवार्य करने आदि मुद्दों पर उन्होंने केंद्र के प्रति कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। मोदी की सबसे कïट्टर विरोधी ममता बनर्जी शिवसेना की इसलिए प्रशंसा कर रही हैं कि वह भी भाजपा विरोध के रास्ते पर चलने लगी है। उद्धव महाराष्ट्र के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए वह ममता बनर्जी के साथ आना चाहते हैं। हालांकि दोनों नेताओं के मिलने के बाद भी शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस के एक दूसरे के साथ आने की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन ममता और उद्धव जिस तरह एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि मोदी विरोध के नाम पर दोनों के एक दूूसरे से हाथ मिला ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।
हाईलाइटर ::(हालांकि ममता जिस तरह से सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध लड़ रही हैं उसके मुताबिक तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना दो विपरीत धु्रव की पार्टी है।) 

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]