पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद भी हिंसा जारी रहने पर केंद्र सरकार ने चिंता प्रकट करते हुए राज्य सरकार को कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की जो सलाह दी उसके अनुरूप कुछ होने के आसार कम ही हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार उनके राज्य में सब कुछ ठीक है और जो गड़बड़ी हो भी रही है उसके लिए बाहरी तत्व जिम्मेदार हैं। उनका यह भी मानना है कि ये बाहरी तत्व भाजपा ने बुलाए हैं। आखिर ऐसी सोच के रहते यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि बंगाल में जारी हिंसा थमेगी? बंगाल में चुनाव के पहले से ही शुरू हो गई राजनीतिक हिंसा जिस तरह रुकने का नाम नहीं ले रही उससे प्रदेश ही नहीं देश की भी बदनामी हो रही है। देश में यही एक अकेला ऐसा राज्य बचा है जहां राजनीतिक हिंसा का वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है।

नि:संदेह इसका कारण यही है कि हिंसक तत्वों को तृणमूल कांग्रेस का संरक्षण हासिल है। हालात इसलिए नहीं संभल रहे, क्योंकि पुलिस प्रशासन सत्ताधारी दल की शाखा की तरह व्यवहार कर रहा है। बंगाल में राजनीतिक एवं चुनावी हिंसा वामदलों के जमाने से ही हो रही है। माना यह जाता था कि वामदलों की मनमानी से लड़कर सत्ता में आईं ममता बनर्जी अन्य अनेक बदलाव लाने के साथ ही राजनीतिक संस्कृति को भी परिवर्तित करने का काम करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने परिवर्तन के अपने नारे को लेकर तनिक भी गंभीरता दिखाई। इसके बजाय उन्होंने वामदलों वाली ही संस्कृति अपना ली। वामदलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ उन्होंने अन्य अराजक तत्वों को भी तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा बना लिया। इसके दुष्परिणाम सामने आने ही थे।

समस्या केवल यही नहीं है कि ममता बनर्जी राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं, बल्कि यह भी है कि वह इस हिंसा में लिप्त तत्वों का खुलेआम बचाव कर रही हैं। ऐसा रवैया वही अपना सकता है जो राजनीतिक वैमनस्य से ग्रसित हो और जिसे अपने शासन की छवि की कोई परवाह न हो। पता नहीं क्यों ममता बनर्जी यह समझने को तैयार नहीं कि उनकी ओर से वामदलों वाले तौर-तरीके अपनाने के कारण ही उनकी राजनीतिक जमीन खिसकती चली जा रही है। कोई भी दल अथवा नेता अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत नहीं कर सकता। विडंबना यह है कि लोकसभा चुनावों में आघात लगने के बाद ममता बनर्जी ने पहले से अधिक अलोकतांत्रिक रुख-रवैया अपना लिया है।

जनादेश को स्वीकार करने से बचने के साथ ही वह मोदी सरकार के प्रति जैसा अनुदार रवैया अपनाए हुए हैं वह मुख्यमंत्री के पद पर आसीन नेता को शोभा नहीं देता। कानून एवं व्यवस्था राज्यों के अधिकार क्षेत्र वाला एक ऐसा विषय है जिस पर ममता बनर्जी बढ़-चढ़कर बोलती रही हैं। यह उनकी नैतिक ही नहीं, संवैधानिक जिम्मेदारी है कि बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा पर प्रभावी ढंग से रोक लगे। एक मुख्यमंत्री के रूप में वह अपने दायित्वों का निर्वहन सही ढंग से करें, इसकी चिंता केंद्र सरकार के साथ-साथ अन्य दलों को भी करनी चाहिए।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप