भारत में घपला-घोटाला या अन्य कोई अवैध-अनुचित काम कर विदेश में छिपने वालों को स्वदेश लाने के लिए कूटनीतिक गतिविधियों को गति देना समय की मांग है, लेकिन इसी के साथ उन उपायों पर भी गौर किया जाना चाहिए जिससे प्रत्यर्पण में कम से कम समय लगे। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अधिकतर मामलों में विदेश में जा छिपे लोगों को भारत लाने में कहीं अधिक समय लग जाता है। नि:संदेह यह राहतकारी है कि ब्रिटेन के गृह मंत्री ने विजय माल्या को भारत प्रत्यर्पित करने की अनुमति दे दी, लेकिन अभी यह तय नहीं कि वह भारत के हाथ कब लगेंगे।

विजय माल्या ब्रिटेन के गृहमंत्री के आदेश के खिलाफ वहां के उच्च न्यायालय में अपील करेंगे। यदि उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को सही पाया तब जाकर उनका भारत आना सुनिश्चित हो सकेगा। हालांकि इसके आसार न के बराबर हैैं कि उच्च न्यायालय निचली अदालत के आदेश में कोई हेरफेर करेगा, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वह अपना फैसला कब सुनाएगा? देखना यह भी होगा कि ब्रिटिश उच्च न्यायालय के आदेश के बाद विजय माल्या भारत आने से बचने के लिए कोई जतन करते हैैं या नहीं? ध्यान रहे कि वह भारत आने से बचने के लिए किस्म-किस्म के बहाने गढ़ते रहे हैैं। यही काम पंजाब नेशनल बैैंक में घोटाले के आरोपी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी भी कर रहे हैैं।

जहां नीरव मोदी यह राग अलाप रहे कि उन्हें भारत में खलनायक की तरह देखा जा रहा वहीं मेहुल चोकसी यह बहाना पेश कर रहे कि वह एंटीगुआ से भारत तक का लंबा हवाई सफर नहीं कर सकते। विडंबना यह है कि कई बार इस तरह की बहानेबाजी को संबंधित देशों की अदालतें महत्व देने लगती हैैं।

यह एक तथ्य है कि ब्रिटेन की अदालतों ने भारत में वांछित कई तत्वों को इस आधार पर प्रत्यर्पित करने से मना कर दिया कि यहां की जेलों की दशा अच्छी नहीं है। एक ओर जहां ब्रिटेन जैसे देश हैैं, जहां का प्रत्यर्पण संबंधी तंत्र कुछ ज्यादा ही जटिल है वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश हैैं जो वांछित शख्स की पहचान स्थापित होने और उसकी कारगुजारी का विवरण मिलते ही उसे प्रत्यर्पित कर देते हैैं। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी देश हैैं जो प्रत्यर्पण के मामले में एक तरह से मनमाना रवैया प्रदर्शित करते हैैं।

पुरुलिया कांड में वांछित किम डेवी का पुर्तगाल से प्रत्यर्पण नहीं हो पा रहा है तो इसीलिए, क्योंकि वहां की सरकार भारत की चिंता समझने के बजाय अपने आपराधिक अतीत और छवि वाले नागरिक की हिफाजत को ज्यादा अहमियत दे रही हैै। यह सही है कि पुर्तगाल सरीखे यूरोपीय देश मानवाधिकारों को कहीं अधिक अहमियत देते हैैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे इसके नाम पर अपराधियों का बचाव करें। जरूरी केवल यह नहीं है कि पुर्तगाल सरीखे देशों के प्रति सख्त कूटनीति का परिचय दिया जाए, बल्कि यह भी है कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज भी उठाई जाए ताकि ऐसा कोई कानून बन सके जिससे वांछित तत्व बहानेबाजी कर प्रत्यर्पण से बचने न पाएं।