इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान एवं शाही ईदगाह मस्जिद मामले की सुनवाई के समय मंदिर पक्ष ने यह आरोप लगाया कि मस्जिद पक्ष पुरानी बातें दोहराकर बहस को लंबा खींच रहा है। पता नहीं इस आरोप में कितना सच है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ समय पहले उच्च न्यायालय की ओर से भी यह कहा जा चुका है कि मस्जिद पक्ष के वकील पहले कही गई बातें फिर से न दोहराएं। अब अगली सुनवाई इस माह के अंत में होगी। कहना कठिन है कि यह सुनवाई कितनी लंबी चलेगी? जो कहा जा सकता है, वह यह कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय से असंतुष्ट पक्ष सर्वोच्च न्यायालय जाएगा और वहां भी इस मामले की लंबी सुनवाई चल सकती है।

यह तो अच्छा हुआ कि इस विवाद से जुड़े कई मामलों की जो सुनवाई मथुरा की स्थानीय अदालतों में हो रही थी, उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने यहां मंगवा लिया, ताकि सदियों पुराने इस प्रकरण का निस्तारण यथाशीघ्र किया जा सके, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण पर रोक लगा रखी है।

वैसे जब काशी के ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण हो चुका है, तब फिर न्याय और नीति यही कहती है कि मथुरा की ईदगाह मस्जिद का भी सर्वेक्षण हो, जिसके बारे में यह मान्यता है कि उसका निर्माण श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर पर किया गया। इसके वैसे ही दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हैं, जैसे ज्ञानवापी परिसर के हैं। काशी और मथुरा जैसे विवाद और भी हैं। इनमें से कुछ अदालतों में भी हैं, जैसे कि मध्य प्रदेश के धार जिले का भोजशाला परिसर।

हिंदू पक्ष का यह मानना है कि यह देवी सरस्वती का मंदिर है, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह कमाल मौला के नाम से बनी मस्जिद है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक निर्णय के चलते पिछले दो माह से अधिक समय से भोजशाला परिसर का सर्वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से हो रहा है। इस तरह के कुछ और मामले भी उभर आए हैं। प्रश्न यह है कि आखिर ऐसे मामलों का निस्तारण कब और कैसे होगा? क्या यह उचित नहीं होगा कि इस तरह के जो भी प्रमुख मामले हैं, उनका निपटारा एक निश्चित समयसीमा में किया जाए।

यह तभी संभव है, जब दोनों पक्षों के साथ-साथ न्यायपालिका भी इसके लिए तत्परता दिखाएगी। इसका कोई औचित्य नहीं कि इस तरह के मामलों की सुनवाई वर्षों तक होती रहे। उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी कोई व्यवस्था करे, जिससे मंदिर-मस्जिद से जुड़े विवादों का पटाक्षेप हो और देश आगे बढ़े। यह भी समय की मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय पूजा स्थल अधिनियम की वैधानिकता की परख करे। इससे काशी, मथुरा के साथ इस जैसे अन्य विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।