सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पीसी घोष के देश के पहले लोकपाल के रूप में शपथ लेते ही देश में एक नई संस्था ने आकार ले लिया। हालांकि लोकपाल सदस्यों की भी घोषणा हो चुकी है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं कि यह संस्था विधिवत ढंग से अपना काम कब से और कैसे करेगी? यह अस्पष्टता जितनी जल्दी दूर हो उतना ही अच्छा, क्योंकि पहले ही अनावश्यक देर हो चुकी है।

करीब चार दशक के इंतजार के बाद 2013 में लोकपाल संबंधी विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गई थी, लेकिन किन्हीं कारणों से लोकपाल और उसके सदस्यों के नाम तय करने में छह साल लग गए। चूंकि यह जरूरी काम देर से और लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद हुआ इसलिए उस पर सवाल भी उठे। इन सवालों की अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन अब ज्यादा जरूरी यह है कि केंद्रीय स्तर के नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाली लोकपाल नामक नई संस्था उन उम्मीदों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़े जो उससे लगाई गई थीं और जिनके चलते एक समय पूरा देश आंदोलित हो उठा था।

नि:संदेह लोकपाल संस्था इसीलिए अस्तित्व में आई, क्योंकि अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक प्रभावी आंदोलन उठ खड़ा हुआ था। इसमें दोराय नहीं कि इस संस्था के सामने खुद को सक्षम साबित करने की चुनौती है। यदि लोकपाल पीसी घोष और उनके आठ सहयोगी इस चुनौती का सामना सही तरह करते हैैं तो वे न केवल उम्मीदों को पूरा करेंगे, बल्कि भ्रष्टाचार से लड़ने के मामले में एक प्रतिमान भी स्थापित करेंगे। यह प्रतिमान इसलिए स्थापित होना चाहिए, क्योंकि एक तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है और दूसरे राज्यों के लोकायुक्तों के समक्ष उदाहरण पेश करने की भी आवश्यकता है।

यह सही है कि भ्रष्टाचार से लड़ने का काम केंद्रीय जांच ब्यूरो और सुप्रीम कोर्ट के जरिये अभी भी हो रहा है, लेकिन सीबीआइ की अपनी सीमाएं हैैं और फिर वह सरकार के नियंत्रण में काम करने वाली एजेंसी है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट की भी अपनी सीमाएं हैैं। एक तथ्य यह भी है कि वह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के सवाल को सही तरह नहीं हल कर सका है। इन हालात में सरकार से इतर एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त संस्था चाहिए ही थी। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि लोकपाल संस्था अपने कार्य-व्यवहार से अपनी साख बनाने का काम करे। यह बहुत कुछ उसके कामकाज के तौर-तरीकों पर निर्भर करेगा।

उचित यह होगा कि नई सरकार का गठन होने के पहले ही लोकपाल संस्था जांच और अभियोजन संबंधी अपने तंत्र का गठन कर ले। केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को इसका आभास होना आवश्यक है कि भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एक नई और सक्षम संस्था अस्तित्व में आ चुकी है। लोकपाल संस्था के सक्रिय होने के बाद भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आने के साथ ही भ्रष्ट तत्वों के मन में भय व्याप्त होना आवश्यक है। बेहतर होगा कि राज्य सरकारें भी इसकी चिंता करें कि लोकायुक्त अपने दायित्व का निर्वहन सही तरह कर पा रहे हैैं या नहीं?