अभी लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू ही हो रहा है, लेकिन आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की खबरें आने लगी हैं। बतौर उदाहरण राजस्थान में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की 15 सौ से अधिक शिकायतें की जा चुकी हैं। इसी तरह उत्तराखंड में छह सौ अधिक शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं। कर्नाटक में तो 15 करोड़ रुपये से अधिक जब्त किए जा चुके हैं। इससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि आने वाले दिनों में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का सिलसिला और जोर पकड़ेगा।

यह सिलसिला यही बयान कर रहा है कि राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी आदर्श आचार संहिता की परवाह नहीं कर रहे हैं। यह तब है जब निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर सख्त है। उसने एक एप तैयार किया है, जिसमें कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। निर्वाचन आयोग ने यह भी व्यवस्था की है कि शिकायत मिलने के सौ मिनट के अंदर कार्रवाई की जा सके।

यह अच्छा है कि निर्वाचन आयोग की ओर से शिकायतें दर्ज कराने के लिए जारी एप को लोग उपयोगी मान रहे हैं और वे उसे डाउनलोड भी कर रहे हैं, लेकिन यह चिंता की बात है कि आदर्श आचार संहिता के पालन को लेकर राजनीतिक दल गंभीर नहीं। चुनाव संबंधी आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन इसीलिए अधिक होता है, क्योंकि उल्लंघन करने वाले कठोर दंड के भागीदार मुश्किल से ही बन पाते हैं।

चुनाव जीतने के लिए अनुचित साधनों का इस्तेमाल करने वाले निर्वाचन आयोग से दो हाथ आगे ही रहते हैं। वे मतदाताओं को लुभाने के लिए पैसा, शराब और सामग्री गुपचुप रूप से बांटते हैं। जिन प्रत्याशियों को यह पता होता है कि वे किस सीट से चुनाव लड़ने वाले हैं, वे तो आदर्श आचार संहिता लागू होने के पहले ही मतदाताओं के बीच पैसा बांट देते हैं।

इससे इनकार नहीं कि निर्वाचन आयोग की टीमें चुनाव में अनुचित साधनों का इस्तेमाल रोकने और लोगों के बीच पैसा न बंटने पाए, इसके लिए सचेत रहती हैं, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि वह सारा पैसा जब्त नहीं हो पाता होगा, जो मतदाताओं के बीच बांटने के लिए जमा किया गया होता है या फिर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि चुनाव में खर्च की जो सीमा है, उससे कहीं ज्यादा पैसा खर्च किया जाता है।

चुनाव बाद प्रत्याशी भले ही शपथपत्र देकर यह कहते हों कि उन्होंने तय सीमा के अंदर ही धन खर्च किया, लेकिन सच यही है कि ऐसे अधिकांश शपथपत्र दिखावटी ही अधिक होते हैं। न जाने कितने निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां प्रत्याशी तय राशि से कहीं अधिक धन चुनाव लड़ने में खर्च करते हैं। ऐसे में निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनावों के लिए यह आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग को और अधिक अधिकार मिलें।