वायुसेना को मिला लड़ाकू हेलीकाप्टर प्रचंड, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
ऐसे हेलीकाप्टर की आवश्यकता कारगिल संघर्ष के समय महसूस की गई थी। लगभग दो दशकों के शोध एवं अनुसंधान के बाद एचएएल द्वारा इसे पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए निर्मित किया गया है।
देश में निर्मित हल्के लड़ाकू हेलीकाप्टर प्रचंड का वायु सेना का अंग बनना एक और गौरवशाली उपलब्धि भी है और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक नया कदम भी। शक्ति, वेग और प्रहार क्षमता के मामले में अपने नाम को सार्थक करने वाला यह स्वदेशी हल्का लड़ाकू हेलीकाप्टर इसलिए वायु सेना की सामर्थ्य बढ़ाने का काम करेगा, क्योंकि इसका उपयोग कहीं पर भी किया जा सकता है-रणभूमि से लेकर आतंकवाद विरोधी अभियानों तक में।
ऐसे हेलीकाप्टर की आवश्यकता कारगिल संघर्ष के समय महसूस की गई थी। लगभग दो दशकों के शोध एवं अनुसंधान के बाद एचएएल द्वारा इसे पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए निर्मित किया गया है। यह सबसे ऊंची युद्ध भूमि सियाचिन में भी काम करेगा। जैसे प्रचंड के माध्यम से भारत ने यह बताया कि वह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए प्रतिबद्ध है, वैसे ही हल्के लड़ाकू विमान तेजस के निर्माण ने भी यही इंगित किया था।
यह सुखद है कि कई देशों ने तेजस खरीदने में वैसी ही रुचि दिखाई है, जैसी स्वदेश निर्मित मिसाइलों को लेकर। हल्के लड़ाकू हेलीकाप्टर का निर्माण यह भरोसा दिला रहा है कि मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने को प्राथमिकता दे रही है।
यह उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्रालय ने 2025 तक 1.75 लाख करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसमें 35,000 करोड़ रुपये का निर्यात भी शामिल है। रक्षा मंत्रालय ने हाल के समय में कई ऐसे हथियारों और उपकरणों की सूचियां जारी की हैं, जिनका निर्माण स्वदेश में ही किया जाना है। हमारे जो भी विज्ञानी और तकनीशियन युद्धक सामग्री और उपकरणों के निर्माण में रत हैं, उन्हें और अधिक प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की गति और तेज हो सके। इसके लिए शोध एवं अनुसंधान की प्रक्रिया पर विशेष ध्यान देना होगा और इस क्रम में यह सुनिश्चित करना होगा कि हम कैसे स्वदेश में ही अपनी जरूरत की अधिकाधिक रक्षा सामग्री का निर्माण कर सकें।
कोई देश वास्तव में महाशक्ति तभी बनता है, जब वह युद्धक सामग्री और उपकरणों के मामले में भी आत्मनिर्भर होता है। चूंकि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लक्ष्य को देर से तय किया गया, इसलिए अब उसे एक निश्चित समय सीमा में पाने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत रक्षा सामग्री का आयात करने वाले प्रमुख देशों में शामिल है।
अब भारत को रक्षा सामग्री के आयातक के स्थान पर निर्यातक बनने के लक्ष्य का संधान करना होगा। युद्धक सामग्री के निर्माण के लिए शोध एवं अनुसंधान प्रक्रिया को बल देते समय इस पर भी गौर करना होगा कि युद्ध के परंपरागत तरीके बदल रहे हैं और हमारी सेनाओं को ऐसी रक्षा सामग्री चाहिए, जो उच्च तकनीक से अधिकाधिक लैस हो।