बिहार के विपक्षी दलों को गुजरात के चुनाव परिणाम से सबक लेना चाहिए। इस परिणाम से स्पष्ट है कि मतदाता विकास को सर्वाधिक महत्व दे रहे हैं जबकि धर्म, जातिवाद और अन्य संकीर्णताओं के आधार पर चुनाव जीतने के नुस्खे अब कारगर नहीं रहे। गुजरात चुनाव में वरिष्ठ नेताओं ने मंदिरों में मत्था टेका, खुद को शिवभक्त घोषित किया, जनेऊ निकालकर दिखाया, पर मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया कि ये बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। 21वीं सदी के दूसरे दशक के उत्तराद्र्ध पर खड़े देशवासी अब अच्छी शिक्षा, चिकित्सा, उन्नतशील कृषि, नारी सम्मान, प्रदूषणमुक्त पर्यावरण, निर्मल नदियां, ग्रीन कवर, रोजगार, औद्योगिक निवेश और अपराधमुक्त परिवेश चाहते हैं। बिहार की राजनीति में कुछ दल विकास की उपेक्षा करने के आदी हैं। कुछ साल पहले राज्य के एक बड़े नेता ने नारा दिया था कि हमें सम्मान चाहिए, विकास नहीं। क्या बिना विकास कोई व्यक्ति, परिवार या समुदाय सम्मानित महसूस कर सकता है? समाज के कमजोर तबके के व्यक्तियों को आरक्षण और अन्य माध्यमों से सहारा दिया जा रहा है ताकि वे विकास और आत्मविश्वास की मुख्यधारा में आ सकें। इस नीति के क्रांतिकारी परिणाम देश के सामने हैं। बहरहाल, अब वह वक्त आ चुका है, जब राजनीतिक दल जाति, धर्म और आरक्षण के नाम पर राजनीति करना बंद करें। समग्र विकास किसी व्यक्ति, धर्म, जाति या क्षेत्र विशेष के लिए नहीं होता, उसका लाभ सबको मिलता है। शिक्षा संस्थानों, चिकित्सालयों, सड़कों, पुलों और परिवहन सुविधाओं पर किसी खास वर्ग का वर्चस्व नहीं होता। बेहतर होगा कि बिहार के विपक्षी दल गुजरात नतीजे के सबक समझें और अपनी चुनाव रणनीति में बदलाव करें। बिहार ने जातिवादी राजनीति के बहुत दंश झेले। नेताओं ने मतदाताओं को जातिवाद की घुट्टी पिलाकर सूबे का सामाजिक माहौल खराब कर दिया। यह नकारात्मक राजनीति है। एक वर्ग को खुश करने के लिए किसी अन्य वर्ग को अपमानित करना घटिया हथकंडा है। नेताओं को इससे बाज आना चाहिए। विपक्ष को अपने एजेंडे में विकास को स्थान देना चाहिए। जो विकास परियोजनाएं चल रही हैं, उन पर विपक्ष की नजर रहे। यदि कुछ गड़बड़ी हो रही है तो उसे उजागर करना चाहिए। जो अच्छे काम हो रहे हैं, उनकी सराहना भी करना चाहिए।
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गुजरात के चुनाव परिणाम में बिहार की राजनीति के लिए सबक छिपे हैं। वहां के मतदाताओं ने जाति और धर्म की राजनीति को नकारकर भाजपा के विकास एजेंडे पर भरोसा जताया। बिहार ऐसे जनादेश का अगला गंतव्य हो सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]