शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन तो कम से कम सदन की कार्यवाही सामान्य तरीके से हो। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए यह आवश्यक है कि वे सदन की गरिमा बनाए रखें।
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झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र लगातार तीसरे दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। ऐसे में आम लोगों से जुड़े सवाल उठ ही नहीं पा रहे तो सरकार का कामकाज भी पूरा नहीं हो पा रहा। झारखंड में छोटे सत्रों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अगर इस समय का सदुपयोग भी पक्ष-विपक्ष न कर सके तो सवाल उठना लाजिमी है। हंगामे के कारणों को लेकर भी दोनों पक्षों को सोचना चाहिए। नीयत और नीति साफ हो तो आम लोगों का काम सदन में होगा, यह भी तय है।
सदन के सफल संचालन को लेकर सरकार की तैयारियां कम नहीं थीं। अपने विधायकों और मंत्रियों को भी सरकार ने पूरी तैयारी कर लेने का निर्देश दिया था ताकि सवालों का जवाब विधायकों को मिल सके। इसके बावजूद कुछ न कुछ गड़बड़ी हो ही जा रही है। किसी एक पक्ष को दोष देना ठीक नहीं है। हंगामे में दोनों की भूमिका है। इसलिए पक्ष-विपक्ष दोनों को सोचना चाहिए कि कैसे सदन का कामकाज बेहतर हो। इसके पूर्व कार्यमंत्रणा की बैठक में भी मुख्यमंत्री ने विपक्ष से सहयोग करने और जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस के लिए विषय सुझाने का अनुरोध कर यह तो स्पष्ट कर ही दिया था कि सरकार कामकाज सुचारू तरीके से चलाना चाहती है। बुधवार को अनुपूरक के बाद कोई बिजनेस नहीं होना और शुक्रवार को सत्र के समापन पर मूल रूप से दो दिन का ही काम सदन में होता दिख रहा था और दोनों दिन (बुधवार और गुरुवार) हंगामे की भेंट चढ़ गए। शीत सत्र में सरकार बजट सत्र की भी तैयारियां करना चाह रही थी। सत्ताधारी दल के विधायकों से इसी दौरान सुझाव मांगे गए थे। स्वयं स्पीकर ने भी सत्र की शुरुआत में सभी सदस्यों से सार्थक भागीदारी करने की अपील की थी। अनुपूरक बजट और विनियोग एवं राजकीय विधेयकों पर चर्चा के लिए उन्होंने सभी से आग्रह किया था। विपक्ष की मांग थी कि सत्र को बढ़ाया जाए। सरकार ने विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया था। पिछले दो दिनों की गतिविधि देखकर यह तो समझा ही जा सकता है कि सरकार का निर्णय सही ही था। सत्र और बढ़ाते तो कामकाज की गारंटी तो नहीं, हंगामा जरूर बढ़ता। शुक्रवार को सत्र का आखिरी दिन है और सबकी नजर इस पर रहेगी कि कम से कम आखिरी दिन कामकाज सामान्य तरीके से हो। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए यह आवश्यक भी है कि वे सदन की गरिमा बनाए रखें।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]