प्रदेश मिलावट का धंधा तो वर्ष भर चलता रहता है। ऐसे में त्योहारों से ऐन पहले ही खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग किया जाना विभागीय कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
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प्रदेश में मिलावटी पदार्थों के सैंपल की समय से रिपोर्ट न आना चिंताजनक है। इससे न केवल मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हो रहे हैं बल्कि आमजन को भी जाने अनजाने जहर गटकने को मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश में मिलावटखोरी की बढ़ती घटनाओं के बाद सरकार ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक निर्धारण अधिनियम को मंजूरी दी थी। इसके तहत खाद्य सुरक्षा अभिकरण का भी गठन किया गया। अभिकरण का कार्य प्रदेश में समय-समय पर खाद्य पदार्थों के सैंपल एकत्र करना और इसकी जांच करना है। प्रदेश में यह व्यवस्था अभी प्रभावी नहीं नजर आ रही है। स्थिति यह है कि खाद्य सुरक्षा विभाग ऐन त्योहारी सीजन के दौरान ही सक्रिय नजर आता है। इस दौरान जो सैंपल लिए जाते हैं उनकी रिपोर्ट आने में महीनों लग रहे हैं, जबकि व्यवस्था यह है कि सैंपल लेने की तारीख के 14 दिन के भीतर रिपोर्ट आ जानी चाहिए। सैंपल की जांच में देरी होने के कारण सैंपल खराब होने का खतरा रहता है। इससे आरोपी विभाग को ही निशाना बनाकर अपना कानूनी पक्ष मजबूत करने में कामयाब होकर साफ बच निकलते हैं। यही एक कारण भी है कि प्रदेश में मिलावट का धंधा तेजी से फल फूल रहा है। त्योहारी सीजन में की गई सैंपलिंग के नतीजे जब तक जांच के लिए पहुंचते हैं तब तक सारा जहर उपभोक्ताओं के गले से नीचे उतर हो चुका होता है। यह व्यवस्था अभी तक सुधर नहीं पा रही है। ऐसे में विभागीय अधिकारियों की मिलावटखोरों से साठगांठ के आरोप लगना लाजिमी है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्यों खाद्य सुरक्षा महकमा वर्ष भर खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग से मुंह फेरे रहता है। जो सैंपल लिए जाते हैं उनकी जांच रिपोर्ट समय पर क्यों नहीं मिल पा रही है। स्थिति यह है कि दीपावली के दौरान लिए गए सैंपलों की रिपोर्ट होली पर मिलती है। जाहिर है कि जानबूझ कर परीक्षण की प्रक्रिया को जटिल किया जा रहा है ताकि व्यवस्थागत खामी का लाभ मिलावटखोरों को मिल सके। समय से सैंपल लेना और इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करना विभाग का काम है। विभाग चाहे जितने तर्क दे लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता। व्यवस्था में कहीं कोई कमी आ रही है तो इससे शासन और सरकार को अवगत कराना विभाग का काम है ताकि समय रहते इन्हें दूर किया जा सके। सरकार और शासन को भी इस विषय को गंभीरता से देखने की जरूरत है। व्यवस्था का पूरी तरह पालन कराने की जिम्मेदारी सरकार व शासन की है। सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करे।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]