सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक को अमान्य-असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद भी इस तरह के मनमाने तलाक के मामले सामने आने के बाद उस पर कानून बनाना आवश्यक हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तीन तलाक के मामले सामने आने से यही प्रकट हो रहा है कि तलाक की इस मनमानी प्रथा ने बहुत गहरे जड़ें जमा ली हैैं। नि:संदेह तीन तलाक के मामले सामने आने की एक वजह यह भी है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरीखे संगठन और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता शरीयत का गलत हवाला देकर करके अपने ही समाज को गुमराह करने में लगे हुए हैैं। उम्मीद है कि अब उन्हें यह समझ आएगा कि वे समाज सुधार का रास्ता नहीं रोक सकते। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि किसी समाज का अपना ही धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व अपने लोगों को कुरीतियों से जकड़े रखने का काम करे? यह अच्छा हुआ कि तीन तलाक संबंधी मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गई। इससे भी अच्छा यह हुआ कि कांग्रेस ने इस विधेयक को समर्थन दिया। कांग्रेस ने इस विधेयक को समर्थन देकर एक तरह से 40 साल पुरानी अपनी भूल को सुधार लिया। अगर राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने शाहबानो के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा नहीं होता तो शायद इस विधेयक की नौबत ही नहीं आती। अगर तब वोट बैैंक की राजनीति को प्राथमिकता नहीं दी गई होती तो शायद मुस्लिम समाज अब तक तीन तलाक की मनमानी प्रथा के साथ ही अन्य अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया होता।
नि:संदेह मनमाने तीन तलाक के खिलाफ कानून बन जाने मात्र से यह सदियों पुरानी कुरीति समाप्त होने वाली नहीं है, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि महिलाओं को असहाय बना देने वाली कुरीतियों को खत्म करने के लिए कानून का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक तथ्य है कि सती प्रथा, दहेज की कुरीति और बाल विवाह के खिलाफ कानून बनाए गए। इन कानूनों ने इन प्रथाओं पर लगाम लगाने का काम किया तो इसलिए भी कि समय के साथ हिंदू समाज जागरूक हुआ। इसी जागरूकता की जरूरत तीन तलाक के चलन को खत्म करने के मामले में भी है। बेहतर हो कि इस मामले में राजनीतिक और साथ ही धार्मिक नेता सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए आगे आएं। उन्हें मुस्लिम समाज की उन महिलाओं से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने तमाम मुसीबतों के बाद भी अपने हक की आवाज बुलंद की। इसी के साथ इस पर भी विचार होना चाहिए कि तीन तलाक के खिलाफ बनने जा रहा कानून कहीं आवश्यकता से अधिक कठोर तो नहीं और वांछित नतीजे मिलेंगे या नहीं? ऐसा इसलिए, क्योंकि इस प्रस्तावित कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर कुछ जायज सवाल उठे हैैं, जैसे यह कि यदि एक झटके में तीन तलाक देने वाला पति जेल भेज दिया जाएगा तो फिर पीड़ित महिला को राहत कैसे मिलेगी? बेहतर हो कि संसद की अंतिम मुहर लगने तक यह प्रस्तावित कानून ऐसे सवालों का समुचित जवाब देने मेें सक्षम हो जाए।

[ मुख्य संपादकीय ]