राज्य में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा, आगजनी और मौतों की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन करने पर सरकार की खुले मन से प्रशंसा की जानी चाहिए। न्यायिक आयोग की जांच के बाद विभिन्न समुदायों के बीच लगते रहे आरोप-प्रत्यारोप पर विराम लग जाएगा। दूध का दूध और पानी का पानी होना भी तय माना जाना चाहिए। हरियाणा को हमेशा से ही सद्भाव और भाईचारे के मामले में भी अग्रणी प्रदेश माना जाता रहा है। आरक्षण आंदोलन के दौरान कई जिलों में जान-माल की हानि के अलावा समुदायों के बीच जो खाई नजर आई अब धीरे-धीरे वह खत्म होती नजर आ रही है। विभिन्न सामाजिक संगठनों की भी तारीफ की जानी चाहिए। सरकार ने भी दंगे का दंश ङोल चुके लोगों का सही समय पर साथ देकर उन्हें पुन: स्थापित होने में पूरी मदद की। यह वाकई में काबिलेतारीफ कदम है।

आरक्षण आंदोलन के बाद सरकार लगातार गंभीर नजर आ रही है। न्यायिक जांच आयोग में जिन अधिकारियों की नियुक्ति की गई है उन्हें अपने क्षेत्र का लंबा अनुभव रहा है। विपक्षी दलों की मांग पर सरकार ने न्यायिक जांच आयोग का वादा किया था। सरकार ने अभी तक जिस त्वरित गति से कार्रवाई की है उसके लिए प्रशंसा की जानी चाहिए। दंगों के बाद कार्रवाई करते हुए करीबन 20-25 अधिकारियों का तबादला किया जा चुका है। सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ तबादला करने से ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली में सुधार आ जाएगा? दूसरी ओर प्रकाश सिंह आयोग ने जांच के दौरान अधिकारियों की कार्यप्रणाली और आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका पर जिस तरह सवाल उठाए हैं। वह बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने प्रदेश की पुलिस को फिर कटघरे में खड़ा किया।

सरकार को पुलिस की कार्यप्रणाली और व्यवहार में सुधार लाने की दिशा में मंथन करना होगा। दूसरी ओर ठोस कदम उठाते हुए एक स्पष्ट नीति बनानी होगी। प्रदेश सरकार ने समय रहते अधिक से अधिक लोगों तक प्राथमिक सहायता मुहैया करा दी है। दंगों के बाद मुख्यमंत्री की चिंता भी वाजिब है कि इससे प्रदेश में विकास की गति धीमी पड़ गई है। सरकार और अधिकारियों को विकास की गति को तेज करने के साथ ही जरूरतमंद पीड़ितों को सहायता मुहैया करानी चाहिए। पिछले दिनों मुआवजा की प्राथमिक सहायता में बंदरबांट के जो आरोप लगे थे उनसे सबक लेते हुए नीति तय करनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय-हरियाणा ]