सरकारी कार्यालयों में तमाम दावों के बावजूद वर्क कल्चर में सुधार न होना चिंताजनक है। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। लोग अकसर इसकी शिकायतें उच्चाधिकारियों से करते हैं, बावजूद इसके अनुशासन की कमी देखने को मिल रही है। विगत दिवस राजौरी जिले में स्वास्थ्य केंद्रों का औचक निरीक्षण हुआ तो डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ गैरहाजिर मिला। नि:संदेह गैरहाजिर कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया और कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा गया है, लेकिन प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? स्वास्थ्य विभाग सीधा लोगों की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है। दूरदराज के क्षेत्रों में मरीज पूरी तरह से सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर ही निर्भर हैं। क्या विभाग के उच्चाधिकारियों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह नियमित रूप से अपने यहां निरीक्षण कर सभी की हाजिरी को सुनिश्चित बनाएं। विडंबना यह है कि इस प्रकार की लापरवाही अकसर देखने को मिलती है। सरकारी कार्यालयों में गैरहाजिर रहना एक प्रथा बनती जा रही है। कुछ महीने पूर्व ऊधमपुर और अखनूर में भी इसी प्रकार औचक निरीक्षण के दौरान सरकारी विभागों में कई कर्मचारी गैरहाजिर थे। इसी प्रकार आरएसपुरा, विजयपुर और सांबा के कई स्कूलों में शिक्षक गैरहाजिर पाए गए।

अगर कर्मचारियों का अपनी डयूटी के प्रति यह रवैया रहेगा तो निसंदेह इसका असर विभागों में सरकारी कामकाज पर भी पड़ेगा। प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, बिजली विभाग यह सीधे लोगों के साथ जुड़े हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए सबसे नजदीक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र ही पड़ते हैं। उन्हें वहां पर कर्मचारी नहीं मिलेंगे तो वह इलाज के लिए कहां जाएंगे। इस पर कर्मचारियों को स्वयं भी सोचने की जरूरत है। यह सही है कि सभी कर्मचारियों को एक ही तराजू में नहीं तोला जा सकता, लेकिन यह भी सही है कि ऐसे अनुशासनहीन कर्मचारियों के कारण पूरे विभाग की छवि धूमिल होती है। सरकार को चाहिए कि गैरहाजिर कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। सख्ती के साथ ही अनुशासन बनाया जा सकता है। अगर एक बार कार्रवाई हुई तो अन्य को भी संदेश जाएगा कि अब गैरहाजिर रहना महंगा पड़ सकता है। कर्मचारियों को स्वयं भी जनता के प्रति जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]