वन एवं पर्यावरण विभाग ने बेशक जम्मू-कश्मीर में पालीथिन के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध तो लगाया है लेकिन इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से होना सरकारी अनदेखी का नतीजा है। पालीथिन जमीन में आसानी से नहीं घुलता है और यह जमीन की उर्वरक क्षमता को भी कम कर रहा है। शहर से निकलने वाली नालियों और नालों में रुकावट पैदा कर रहा यह पालीथिन अब लोगों के जी का जंजाल बन चुका है। विडम्बना यह है कि सरकार ने स्वच्छता अभियान तो शुरू किया है लेकिन पालीथिन के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं लगाई है। सरकार ने 50 प्रतिशत वाले माइक्रॉन वाला पालीथिन जो आसानी से जमीन में घुल जाता है, के उत्पादन को हरि झंडी तो दे दी है लेकिन इसकी आड़ में कुछ फैक्टियों में पचास माइक्रॉन से कम महीन पालीथिन बनाया जा रहा है जो पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहा है। यह पालीथिन इतना महीन है कि यह नालियों में निकासी में अवरोधक बनता जा रहा है। करीब नौ साल पहले भी राज्य सरकार ने पालीथिन के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इसका असर भी प्रारंभ में देखने को मिला था और लगातार चलाए जागरूकता अभियान व आदेश को लागू करवाने के लिए हुई सख्ती के बाद लोगों ने कागज के लिफाफों और कपड़े के बैग का इस्तेमाल करना शुरू किया था। विडंबना यह रही कि सरकार इसके बाद आदेश को लागू करवाने में स्वयं ही गंभीर नजर नहीं आई। सरकार के प्रयास तभी फलीभूत होंगे जब राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस आदेश को लागू किया जाएगा। बीते कुछ वर्ष में यह देखने को मिला है कि सरकार ने पालीथिन पर प्रतिबंध तो लगा दिया मगर बाद में दबाव में आकर इस आदेश को लागू करने गंभीर नजर नहीं आई। प्रतिबंध को लागू करवाने वाली एजेंसियों ने इसको नजरअंदाज किया। चंद दुकानों पर छापे मार कर कुछ किलोग्राम पालीथिन जब्त कर यह दिखाने का प्रयास किया कि कार्रवाई हो रही है। पॉलीथिन बनाने वाली फैक्टियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। लोगों को पॉलीथिन के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करने के लिए भी सरकार को अभियान शुरू करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]