राज्य के दूरदराज खासतौर पर दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी की दिक्कत लंबे अरसे से बनी हुई है। ये हाल तब है, जब फिलवक्त छात्र और शिक्षक अनुपात में उत्तराखंड का प्रदर्शन अच्छा है। उस नजरिये से राज्य बेहतर हालत में है। इसके बावजूद दुर्गम क्षेत्रों के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में मानक के मुताबिक शिक्षक तैनात नहीं हैं तो यह व्यवस्था पर सवालिया निशान ही है। इसकी वजह ये है कि प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक शिक्षकों की नई नियुक्तियां हों या पदोन्नति, शिक्षक दुर्गम में जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। सरकारी तंत्र इच्छाशक्ति के अभाव में इस समस्या का निदान ढूंढ़ नहीं पाया है। इसका खामियाजा सैकड़ों सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को बंदी के रूप में भुगतना पड़ा है। दस से कम छात्रसंख्या वाले आठ सौ से ज्यादा प्राथमिक विद्यालयों को बंद किया जा रहा है। इन विद्यालय भवनों को जन हित के कार्यो में उपयोग को ग्राम पंचायतों को सौंपा जाएगा। दरअसल, दुर्गम क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों के बंद होने की नौबत तक पहुंचने के कारणों की तह में जाने की जरूरत है। जनगणना के आंकड़ों में यह बात पहले ही सामने आ चुकी कि पर्वतीय क्षेत्रों से स्तरीय और गुणवत्तापरक शिक्षा के अभाव में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। यह अब भी जारी है।

बंद होने वाले अधिकतर विद्यालयों में एकल शिक्षक तैनात रहे हैं। यानी शिक्षा के अधिकार अधिनियम में विद्यालय में न्यूनतम शिक्षकों का जो मानक निर्धारित है, उसकी लंबे अरसे तक अनदेखी हुई है। नतीजा अभिभावकों और छात्र-छात्रओं में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के प्रति भरोसे में कमी आने के तौर पर सामने आया है। राज्य बनने के बाद से अब तक सरकारी विद्यालयों में छात्रसंख्या 50 फीसद तक घट चुकी है, जबकि आसपास के ही निजी विद्यालयों में छात्रसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। राज्य के कुल 13 जिलों में दो जिले ही पूरी तरह मैदानी हैं। शेष जिलों की भौगोलिक परिस्थितियां विषम हैं। इन विषम क्षेत्रों के लिए शिक्षकों के रिक्त पदों के नाम पर भर्तियां तो हो रही हैं, लेकिन उतनी ही तैनाती नहीं हो रही है। तबादला एक्ट लागू होने के बाद इस दिशा में कुछ उम्मीद तो बंधी है, लेकिन इसके लिए भी दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। मानव संसाधन विकास पर गठित पार्लियामेंट स्टेंडिंग कमेटी ने भी दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी दूर करने की सिफारिश की है। राज्य सरकार के सामने इस सिफारिश पर अमल की चुनौती है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]