दायित्व बोध की कमी
कुल मिलाकर संदेश यही जा रहा कि पिटकुल और यूपीसीएल उपभोक्ता हितों को लेकर संजीदा नहीं हैं।
उत्तराखंड में बिजली आपूर्ति में व्यवधान को लेकर विद्युत नियामक आयोग की सख्ती को गलत नहीं ठहराया जा सकता। ऐसा करके आयोग ने एक प्रकार से व्यवस्था को आईना दिखाया है। आयोग के स्तर से पावर ट्रांसमिशन कारपरेरेशन लिमिटेड (पिटकुल) और उत्तराखंड पावर कारपरेरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) को पावर सिस्टम का प्रोटेक्शन ऑडिट करने के निर्देश दिए गए हैं। यही नहीं, पखवाड़े भर के भीतर इस पर रिपोर्ट भी तलब की गई है। हालांकि, आयोग ने यह कदम औद्योगिक क्षेत्र में लगातार बढ़ रही टिपिंग के मद्देनजर उठाया है, लेकिन घरेलू क्षेत्र के हालात भी इससे जुदा नहीं हैं। बिजली उत्पादन और वितरण से जुड़े निगमों को गंभीरता से यह सोचना चाहिए कि आखिर आयोग को क्यों इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। क्या यह निगमों का खुद का दायित्व नहीं है कि बिजली आपूर्ति में व्यवधान न आने पाए।
कहने में हिचक नहीं कि विद्युत वितरण व्यवस्था में प्रोटेक्शन सिस्टम ठीक से काम ही नहीं कर रहा है। यही वजह है कि फीडर या लाइन में दिक्कत आने पर बहुसंख्य उपभोक्ता प्रभावित हो रहे हैं। चिंताजनक यह कि इसको लेकर जिम्मेदार एजेंसियां बेफिक्र नजर आ रही हैं। उनके कामकाज के तौर-तरीकों से यह साबित भी हो रहा है। इसी तरह की शिकायतों पर चार महीने पहले यूईआरसी, पिटकुल और यूपीसीएल की संयुक्त कमेटी ने गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडल का दौरा कर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें प्रोटेक्शन सिस्टम की खामियों को उजागर करने के साथ ही प्रभावी तरीके से इन्हें दुरुस्त करने की अपेक्षा की गई थी। लेकिन, हुआ कुछ नहीं। नतीजा, स्थिति जस की तस है। दिक्कतें यही नहीं, बल्कि बिजली से जुड़ी अन्य सेवाओं में भी हैं।
छोटे-छोटे कामों को लंबी अवधि तक लटकाना अफसरों का शगल बनता जा रहा है। कुल मिलाकर संदेश यही जा रहा कि पिटकुल और यूपीसीएल उपभोक्ता हितों को लेकर संजीदा नहीं हैं। इनमें दायित्वबोध की कमी साफ तौर पर झलक रही है। इस रवैये को किसी भी लिहाज से ठीक नहीं कहा जा सकता है। इसका न केवल उपभोक्ता हितों पर, बल्कि निगमों के राजस्व पर भी असर पड़ रहा है। यह विचारणीय विषय है कि डर दिखाकर कब तक व्यवस्था को पटरी पर लाया जाएगा। राज्य सरकारों को इस पर गंभीरता से मनन कर जिम्मेदारों को दायित्वबोध कराना चाहिए।
[उत्तराखंड संपादकीय]