इसी साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस पर 25 हजार से अधिक युवाओं को विभिन्न कंपनियों में रोजगार दिलाने के बाद राज्य सरकार उत्साहित है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसी उत्साह में अगले वर्ष 12 जनवरी तक एक लाख युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उनके निर्देश पर राज्य के मुख्य सचिव ने विभागों के अलावा जिलों के लक्ष्य तय करते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। किसी सफलता से उत्साहित होकर उसे जारी रखते हुए विस्तार देना सराहनीय कदम है। लेकिन युवाओं को रोजगार देने के नाम पर खानापूर्ति हरगिज नहीं होनी चाहिए। इसी साल बड़ी संख्या में युवाओं ने नियुक्ति पत्र लेने के बाद कंपनियों में योगदान ही नहीं दिया। एक तो उन्हें चेन्नई जैसे दूरदराज के शहरों में नौकरी मिली थी, वहीं उन्हें मिलनेवाला वेतनमान भी काफी कम था। दस-बारह हजार की नौकरी के लिए युवा इतने दूर कैसे जा सकते हैं? एक कंपनी में अनुकूल माहौल न होने के कारण जमशेदपुर की कई लड़कियां कंपनी में योगदान देने के बाद लौट गईं। श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा आयोजित होनेवाले रोजगार मेलों में कमोबेश यही स्थिति होती है।

हालांकि इसे लेकर भी संबंधित विभागों और उपायुक्तों को अगाह किया गया है। उन्होंने पिछले अनुभव के आधार पर युवाओं को नियुक्ति पत्र देने के साथ ही उनका कंपनियों में योगदान सुनिश्चित करने तथा कंपनियों में अधिक से अधिक वेतनमान पर नौकरी दिलाने का निर्देश दिया है। इसे सख्ती से पालन कराने की मुख्य जिम्मेदारी उच्च, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग की है। अमूमन कौशल विकास का प्रशिक्षण दे रही संस्थाओं को ही प्रशिक्षण पाने वाले युवाओं को रोजगार दिलाने का लक्ष्य दे दिया जाता है। ये संस्थाएं इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिर्फ खानापूर्ति करती हैं। कौशल विकास मिशन का मकसद तो तब पूरा होगा जब प्रशिक्षण के बाद युवाओं को स्वयं रोजगार मिल जाए। अधिक से अधिक इनके प्लेसमेंट के लिए कंपनियों को झारखंड बुलाया जा सकता है। यह तब संभव होगा जब युवाओं को उत्कृष्ट प्रशिक्षण मिलेगा। सरकार को इन प्रशिक्षित युवाओं को स्वरोजगार के क्षेत्र में भी लाने का प्रयास करना चाहिए। सरकार इसके लिए उन्हें आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]