जम्मू-कश्मीर में देश के किसी भी नागरिक को घर-दुकान बनाने और कारोबार शुरू करने के लिए जमीन खरीदने की सुविधा देकर केंद्र सरकार ने इस राज्य को मुख्यधारा में लाने के साथ-साथ वहां विकास की प्रक्रिया को गति देने की एक बड़ी पहल की है। भेदभाव एवं अन्याय के साथ-साथ अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म करने के बाद ऐसा कोई फैसला लिया जाना प्रत्याशित ही था। नि:संदेह यह भी प्रत्याशित था कि महबूबा मुफ्ती एवं फारूक अब्दुल्ला सरीखे नेता ऐसे किसी फैसले का विरोध करने के लिए आगे आ जाएंगे। वे आ भी गए, लेकिन उनके बयान इसी की पुष्टि कर रहे हैं कि वे किस तरह कश्मीर को अपनी निजी जागीर समझकर चल रहे थे। बेहतर हो कि केंद्र सरकार ऐसे अन्य कदम उठाए, जिनसे इन नेताओं का यह मुगालता दूर हो कि कश्मीर उनकी जागीर है।

आखिर इसका क्या मतलब कि कश्मीरी नेता तो कहीं भी जमीन-जायदाद खरीद लें, लेकिन देश का अन्य कोई नागरिक और यहां तक कि कारोबारी भी वहां एक इंच जमीन भी न खरीद सकें? कश्मीर में अलगाववाद इसीलिए पनपा, क्योंकि कश्मीरी नेताओं ने स्थानीय लोगों के मन में यह जहर भर दिया था कि कश्मीरियत और भारतीयता अलग-अलग चीजें हैं। आखिर कश्मीरियत या फिर किसी अन्य राज्य की संस्कृति भारतीयता से अलग कैसे हो सकती है?

यदि कश्मीर में उद्योग-व्यापार गति नहीं पकड़ सका तो कश्मीरी नेताओं की अलगाववादी राजनीति के कारण ही। हजारों लोग काम-धंधे के सिलसिले में जम्मू-कश्मीर जाते हैं। वे राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने के बावजूद चाहकर भी अपने लिए जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं खरीद पाते थे। अब ऐसा नहीं होगा और इसका लाभ वहां जाकर काम-धंधा करने वालों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी मिलेगा। जैसा शेष देश में होता है वैसा ही जम्मू-कश्मीर में होना चाहिए और इसमें जो भी बाधा बने, उससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में काम-धंधे के सिलसिले में रह रहे हजारों लोग किराये का घर छोड़कर अपना घर खरीदना पसंद करेंगे। इससे रियल एस्टेट सेक्टर को तत्काल बल मिलेगा।

स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के ताजा फैसले से न केवल जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि कश्मीरी नेताओं की ब्लैकमेलिंग वाली सियासत पर भी लगाम लगेगी। इस फैसले का एक दूरगामी असर यह भी होगा कि कश्मीर में सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर विविधता का निर्माण होगा और उससे पाकिस्तानपरस्त तत्वों के दुस्साहस का दमन होगा। उचित यह होगा कि जम्मू-कश्मीर और खासकर घाटी में जो पूर्व सैनिक बसना चाहें, उन्हेंं अतिरिक्त रियायत दी जाए।