उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कांवड़ यात्रा को अनुमति दिए जाने के फैसले का सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह स्वत: संज्ञान लिया और राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया, उस पर हैरानी नहीं, क्योंकि इन दिनों देश भर में विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन या तो स्थगित किए जा रहे हैं या फिर उन्हें प्रतीकात्मक रूप से आयोजित किया जा रहा है। अभी हाल में जब पुरी में भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा निकाली गई तो शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। यही काम अहमदाबाद में भी किया गया। ऐसा कोरोना संक्रमण के कारण किया गया। इस सिलसिले में यह भी ध्यान रहे कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि तीर्थ यात्राओं और पर्यटन पर रोक लगाने की जरूरत है। बीते दिनों खुद प्रधानमंत्री ने इस पर चिंता व्यक्त की कि पर्यटन स्थलों में भारी भीड़ कोरोना प्रोटोकाल का उल्लंघन करती हुई दिख रही है। उनकी इस चिंता का आशय यही था कि राज्य सरकारें सार्वजनिक स्थलों में भीड़ को इस तरह जमा होने से रोकें।

एक ऐसे समय जब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका गहराती जा रही है और कुछ राज्यों में कोरोना मरीजों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही, तब ऐसे किसी आयोजन से बचने में ही भलाई है, जिसमें भारी भीड़ जुटती हो। चूंकि कांवड़ यात्रा में लाखों शिवभक्त भाग लेते हैं इसलिए संक्रमण फैलने की आशंका तो है ही। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य करने की बात कही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जरा सी गफलत बड़ी समस्या को जन्म दे सकती है। इस सिलसिले में हरिद्वार कुंभ के अनुभव की अनदेखी नही की जा सकती, जहां कोरोना जांच में बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां हुईं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा को इजाजत देने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय का संज्ञान इसीलिए लिया, क्योंकि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने इस यात्रा को स्थगित करने का फैसला किया। चूंकि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका सिर उठाए हुए है इसलिए उचित यह होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार कांवड़ यात्रा को अनुमति दिए जाने के अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करे। यह सही है कि यथासंभव श्रद्धालुओं की आस्था का भी सम्मान होना चाहिए, इसलिए उचित यह होगा कि हर कहीं कांवड़ यात्रा का आयोजन प्रतीकात्मक रूप से किया जाए। इससे दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति हो जाएगी-धार्मिक परंपरा का निर्वाह भी हो जाएगा और कोरोना संक्रमण के खतरे से भी बचा जा सकेगा।