मंगलवार की शाम अचानक तेज आंधी के साथ हुई बारिश में कुछ ही देर में तबाही मच गई देखते-देखते महानगर के विभिन्न भागों में कुछ सड़कों पर पेड़ टूट कर गिर पड़े तो कहीं- कहीं बिजली के तार टूट गए। पुरानी व निर्माणाधीन इमारत गिर गई। हावड़ा में बंकिम सेतु की रेलिंग तक ढह गई। 98-100 किलो मीटर की रफ्तार से चली तेज आंधी में जिस तरह आम जनजीवन ठप हुआ उसमें राज्य के विभिन्न भागों में लगभग 16 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 से अधिक घायल हुए। बुधवार तक मृतकों की संख्या बढ़कर 16 हो गई। इस समय पश्चिम बंगाल में बारिश के साथ जो तेज आंधी आती है उसे कालबैशाखी के नाम से जाना जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इससे भारी क्षति होती रही है और इसी से इसे काल बैशाखी कहते हैं, लेकिन हमेशा कालबैशाखी कहर ढाती है ऐसी बात नहीं है। बंगाल की जो भौगोलिक स्थिति है उसमें इस समय तेज हवा के साथ बारिश होना मौसम का स्वाभाविक रूप है।

अलीपुर मौसम विभाग ने जो जानकारी दी थी उसमें अप्रैल में ही भीषण गर्मी होने की बात कही गई थी। मौसम विभाग ने कालबैशाखी आने का कोई पूर्वानुमान नहीं दिया था। जाहिर है प्रकृति का स्वभाव मापने के लिए जो मानव निर्मित तंत्र है वह हर समय कारगर होगा यह जरूरी नहीं है। मौसम विभाग कालबैशाखी की पूर्व जानकारी देता तो इससे होने वाले कहर को भले ही पूरी तरह नहीं रोका जाता, लेकिन नुकसान को कम किया जा सकता था। इसलिए कि एक दर्जन से अधिक लोगों की जो मौत हुई है उसमें अधिकांश इस समय घर से बाहर थे या रास्ते से गुजर रहे थे। ऐसे लोग इस समय सुरक्षित स्थान पर होते तो काल के गाल में नहीं समाते, लेकिन प्रकृति के सामने तो मानव मजबूर हैं। इसके बावजूद मानव अपनी सुविधा के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करने से नहीं चूक रह रहा है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने का कुपरिणाम तो मानव को ही भुगतना पड़ेगा। मौसम विभाग की ही मानें तो 72 वषों में इस तरह अचानक काल बैशाखी का भयावह रूप नहीं देखा गया था। 72 वषों में कितना बदलाव हुआ और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ में किस हद तक सीमा का अतिक्रमण किया गया है इसका अंदाजा हम खुद लगा सकते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]