रोहतक के अपना घर में उत्पीड़न की शिकार बच्चियों को छह साल बाद न्याय मिलने जा रहा है। इस प्रकरण ने प्रदेश की सियासत और अफसरशाही के चेहरों पर कई बदनुमा दाग लगा दिए थे। कई बड़े अफसरों व राजनेताओं पर सीधे आरोप लगे लेकिन सुबूतों की दौड़ में कोई भी घेरे में नहीं आ पाया। सीबीआइ कोर्ट ने अपना घर की संचालिका व उसके परिजनों समेत नौ आरोपितों को दोषी करार दिया है। इस मामले में आरोपित बाल विकास व परियोजना अधिकारी सुबूतों के अभाव में बरी हो गईं। अदालत भले ही इस मामले में सजा बाद में सुनाएगी, लेकिन यह साबित हो गया है कि बच्चियों को उनके आश्रय स्थल में ही नरक सी दरिंदगी ङोलनी पड़ी।

जांच के घेरे में प्रदेश के बड़े अधिकारी भी आने चाहिए थे जो इस आश्रम के प्रति अधिक ही कृपा बरसा रहे थे। ऐसे अफसरों की लापरवाही व आंख मूंद लिए जाने की वजह से बच्चियों को हैवानियत का शिकार होना पड़ा। उनसे गलत कार्य में धकेला जाता और मना करने पर चिमटों तक से दागा जाता रहा। इस प्रकरण ने प्रदेश की बेटियों के आश्रय स्थल व बाल आश्रम में मासूमों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठाए। चिंताजनक पहलू यह है कि छह साल बाद भी बहुत से सवाल अभी अनुतरित हैं। शिक्षण संस्थानों व कार्य स्थलों में भी बेटियों की सुरक्षा के प्रति और अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है। अफसरशाही के साथ समाज को भी ऐसे भेड़ियों के प्रति और अधिक सख्त होना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]