राजधानी में गुरुवार से शुरू हुए ‘आइएएस वीक’ के पहले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रशासनिक अधिकारियों को आईना दिखाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि आपके काम से कोई भी संतुष्ट नहीं। मेरे पास आने वाले सभी आपकी शिकायत करते हैं। जनता से लेकर जनप्रतिनिधि और आइपीएस, पीसीएस तथा सेना से लेकर पीपीएस तक। पहचान पद से नहीं, काम से होती है। आइएएस अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए। योगी ने अधिकारियों की खिंचाई की। कहा कि आप अपना काम तो समय पर कर लेते हो, लेकिन अन्य विभागों की फाइलें लटक जाती हैं।

आपको अपनी चिंता बहुत है, लेकिन बाकी की चिंता आप नहीं करते। आप सर्वोच्च हो तो यह जताने की क्या जरूरत है। इसे अपने काम से जताइए। बड़े की तरह व्यवहार भी कीजिए।निसंदेह मुख्यमंत्री की यह बातें सोलह आने सच हैं। पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में पीड़ितों की फाइलें एक मेज से दूसरी मेज तक धूल खाती रहतीं, लेकिन कम ही अधिकारी अपने विवेक का परिचय देते हुए समस्या के निवारण की दिशा में सचेष्ट दिखते। न्याय की गुहार लगाते पीड़ित परलोक सिधार जाते हैं पर अधिकारियों को अपने कर्तव्य निर्वहन अथवा जिम्मेदारी का अहसास नहीं होता। अधिकारियों के सामने ऐसे बहुत से अवसर आते रहते हैं जब वह चाहें तो जनता का दिल जीत सकते हैं साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर सुयश भी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा हो नहीं पाता है।

कई जिले तो ऐसे हैं जहां डीएम और एसपी के बीच मनमुटाव के किस्से आम हैं। क्या यह मन-मुटाव खत्म करके परस्पर समन्वय और सामंजस्य स्थापित कर जनहितकारी कार्यो को गति नहीं दी जा सकती है? यूपी में वरिष्ठ अधिकारियों की कमी नहीं है। इन अधिकारियों का भी प्रयास होना चाहिए कि वह अपने अनुभवों का लाभ युवा अधिकारियों को प्रदान करें। मुख्यमंत्री का यह सुझाव प्रशंसनीय है कि जिन जिलों में अच्छे कार्य हुए हैं, उनकी ‘सक्सेस स्टोरी’ प्रकाशित की जाए। सभी विभागाध्यक्ष ‘गुड गवर्नेन्स’ को अपनी जिम्मेदारी मानें। जनता हर अच्छे काम की सराहना करती है। जाहिर सी बात है कि जब काम सराहा जाएगा तो कर्ता की ही जय होगी। 

[उत्तर प्रदेश संपादकीय]